अक्सर यह शिकायत सुनने को मिलती है कि मेरा प्रेम तिरस्कृत किया जाता है, यह उपेक्षा क्यों झेलना पड़ती है? इसे समझने के लिए 'फिशर' की ताला-चाबी परिकल्पना को समझना होगा...
हर्मन एमिल लुईस फिशर : एक जर्मन रसायनशास्त्री थे , फिशर को 1902 में रसायनशास्त्र के नोबल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था । यह परिकल्पना उन्होंने एंजाइम की क्रियाविधि के संबंध में कही है , एंजाइम एक तरह के जैव-रासायनिक पदार्थ होते हैं , जो प्रत्येक शारीरिक क्रिया को पूरा करने के लिए आवश्यक होते हैं। इस परिकल्पना के अनुसार एक विशेष ताला ( क्रियाधार ) केवल एक विशिष्ट चाबी (एंजाइम ) से ही खोला जा सकता है । चाबी का खान्चित भाग ( Notched portion of the key ) एंजाइम के सक्रिय स्थल ( Active site ) के तुल्य है, चूँकि यहाँ पर अभिक्रिया सम्पन्न होती है अर्थात ताला खुलता है , ताला-चाबी मॉडल एंजाइम विशिष्टता ( enzyme specificity ) की व्याख्या करता है | केवल विशिष्ट आकार के अनु की विशिष्ट आमाप के सक्रिय स्थलों में ठीक बैठ सकते है ।
ताला-चाबी मॉडल इस बात की भी व्याख्या करता है कि अभिक्रिया के अंत में एंजाइम अपरिवर्तित रहते हैं।जिस प्रकार चाबी द्वारा ताला पूर्णत: खुल जाता है , ठीक उसी प्रकार एंजाइम क्रिया द्वारा क्रियाधार अणु टूट जाता है । जिस प्रकार ताले के खुलने पर चाबी अपरिवर्तित रहता है और ताले के भौतिक स्वरूप में भी कोई परिवर्तन नहीं होता । एंजाइम जैव रासायनिक यौगिक हैं , इनकी उपयोगिता आप इस बात से समझ सकते हैं कि जो अगर यह हमारे शरीर में ना हों तो एक बार का खाया खाना पचाने में हमें 50 साल लगेंगे !
जैव-रसायन और प्रेम-रसायन में बड़ी साम्यता है क्योंकि जैसे ही सही चाबी ( प्रेम/अभिकर्मक ), सही ताले ( प्रेमास्पद/क्रियाकारक ) से मिलती है गुत्थी सुलझ जाती है दोनों अपने -अपने गुण छोड़कर एक नया ही गुण धारण कर लेते हैं जो सुखद होता है , उपयोगी होता है और अचरज यह भी है कि इसमें निज-गुण का त्याग करते हुए भी गुण ज्यों के त्यों बने रहते हैं, इसे आप इस चित्र से समझ सकते हैं :
फिशर की ताला-चाबी परिकल्पना , प्रेम के संबंध में |
" रहिमन प्रीति सराहिए, मिले होत रँग दून ।ज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून ।। "
प्रेमका वास्तविक वर्णन हो नहीँ सकता। प्रेम जीवनको प्रेममय बना देता है। प्रेम गूँगेका गुड़ है।प्रेमका आनंद अवर्णनीय होता है।रोमांच,अश्रुपात,प्रकम्प आदि तो उसके बाह्य लक्षण हैँ,भीतरके रस प्रवाहको कोई कहे भी तो कैसे? वह धारा तो उमड़ी हुई आती है और हृदयको आप्लावित कर डालती है।
तो अगर आपके प्रेम को निरादृत किया गया है, तब निराश न होइए क्योंकि सम्भवत: यह अभी अपने सही स्थान तक पहुँचा ही नहीं है। इसे सम्हालकर , संजोकर रखिये यह अमूल्य निधि है इसे प्रकृति ने आपको उपहारस्वरूप दिया है , भौतिक जगत में अगर इसका कोई पात्र नहीं तो भी इसमें निराश न होइये क्योंकि फिर यह उसे ही अर्पित हो जाएगा जिसने इसका सृजन किया है ; क्योंकि प्रेमी और प्रेमास्पद का रिश्ता कुछ ऐंसा होता है :
"आवहु मेरे नयन में पलक बन्द करि लेउँ ।
ना मैं देखौं और कौं ना तोहि देखन देउँ ।। "
प्रेमी और प्रेमास्पद का रिश्ता कुछ ऐंसा होता है : > > पठनीय..
जवाब देंहटाएंआदरणीय आपने अपने अमूल्य समय का दान देकर इसे पढ़ा और यह आपको अच्छा लगा , हार्दिक आभारी हूँ !
हटाएंहिमन प्रीति सराहिए, मिले होत रँग दून ।
जवाब देंहटाएंज्यों जरदी हरदी तजै, तजै सफेदी चून
..बहुत बढ़िया ..
इस सम्बन्ध में कबीर दास जी ने भी खूब कहा है ....
प्रेम गली अति सांकरी जामे दो न समाय
धन्यवाद !! बिला शक निष्काम प्रेम , पूर्ण समर्पण का ही दूसरा नाम है, जिसे इन महानुभावों ने दोहों के रूप में गागर में सागर का रूपक प्रस्तुत करते हुए बखाना है !
हटाएंव्यावहारिक विचारशीलता लिए व्याख्या ....
जवाब देंहटाएंडॉ.मोनिका जी , यह कथ्य आपने पढ़ा और आपको युक्तियुक्त लगा , सादर धन्यवाद
हटाएंवास्तव में प्रेम के इसी स्वरूप को प्रसारित किया जाना चाहिए पर हमारी फिल्म्स और सीरियल व चैनल कुछ अलग ही कर रहे हैं
जवाब देंहटाएंजी , फिल्म्स और सीरियल व चैनल प्रेम को देह तक सीमित करके चित्रित कर रहे हैं , यह ऐंसा ही है जैसे कि घड़े में भरा हुआ पानी और गुब्बारे में भरी हुई हवा !!
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