* तजुर्बा ए मर्दानगी *
कुचल कर तितलियाँ झाड़ों से लटकाई जाती हैं |
साड़ियाँ सलवारें बिंदियाँ और चूड़ियाँ मसल कर
मासूम शक्लें परियों की तेजाब से भिगोई जाती हैं |
घर, मोहल्ला, शहर या हो मैदान किसी जंग का
तजुर्बा ए मर्दानगी में औरतें काम लाई जाती हैं |
मर गईं जो तो चीख पुकार जुलूस मोमबत्तियाँ
गर जिंदा जो रहीं मौत तलक तड़पाई जाती हैं |
अक्सर इस देवी के देश के रहनुमा कहते हैं
क्या हुआ कुछ गलतियाँ लडकों में पाई जाती हैं | "
- डॉ.अमित कुमार नेमा
* यह रचना दिनांक 03/06/2014 को फेसबुक पर प्रकाशित की थी | वहाँ से इसे एक पेज ने बिना अनुमति के चुरा लिया , विडम्बना यह है कि उन्होंने इस रचना के साथ मेरा नाम प्रकाशित करना भी उचित नहीं समझा |
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन छोटी सी प्रेम कहानी - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को आज के ब्लॉग बुलेटिन में स्थान प्रदान कर आपने मुझे जो सम्मान प्रदान किया उससे अनुग्रहीत हूँ ! सादर
हटाएंbahut hi sateek likha hai aapne.. " रंजिशें यहाँ मर्दों की औरतों से भुनाई जाती हैं, .. pata nahin sabhyta ke shuruaat se ye silsila jo chal nikla hai jaane kab khatm hoga
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भावना जी, मेरी रचना आपसे कुछ कह सकी यही इसकी सार्थकता है ! जब तक समाज महिलाओं को देखने का एक स्वस्थ नजरिया विकसित नहीं कर लेता तब शायद यह होता रहेगा , हम कुछ प्रयास कर सकते हैं यह दृष्टिकोण विकसित करने का | सादर
जवाब देंहटाएंआपकी रचना शेयर कर रही हूँ शुक्रिया!
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