expr:class='"loading" + data:blog.mobileClass'>

रविवार, 20 जुलाई 2014

नवजीवन से भेंट

नित नूतन नव जीवन है , हाथ बढा के छू लो ,
बिखरा है आनंद यहाँ , कभी तो खुद को भूलो । 

विनायक” का जन्म एक अद्वितीय घटना है , सृष्टि में यह कोई पहला जन्म नहीं लेकिन हर जन्म के साथ ही कुदरत नाम की “ बड़ी माँ “ का एक और नया जन्म जरूर है , और वो जो बड़ी माँ सबका ध्यान रखती है किसी तिनके को भी अपनी निगाह से ओझल नहीं होने देती उसकी किसी बेटी को चोट न पहुंचे इसका हरदम ख्याल रखती है ।  ममत्व की सरिता , कण-कण को अपने रस में सरोबार कर देती है भावनाओं का अतिरेक, पदार्थ की अवस्था परिवर्तित करने की क्षमता रखता है । 

आज गौ-पालन से जुड़ा हुआ अपना एक अनुभव साझा कर रहा हूँ , गाय को जब प्रसव वेदना होना प्रारम्भ होती है तो वो खाना-पीना लगभग बंद कर देती है और बेचैन हो जाती है , कभी उठती है , कभी बैठती है | इस समय अगर कोई आस-पास हो तो गाय और अधिक परेशान हो जाती है ।  जन्म देने की प्रक्रिया के दौरान सबसे पहले गोवत्स/वत्सा के पैर जननमार्ग से बाहर आते हैं , यह अनुभव इसी से जुड़ा हुआ है । 

नवप्रसूता 'भूरी' और नवजात 'विनायक' 
ध्यान दीजिये प्रकृति या ईश्वर को अपनी एक-एक रचना का कितना ख्याल रहता है, माँ के सुकोमल प्रजनन तन्त्र को कोई चोट न पहुंचे इसलिये नवजात के नन्हें-नन्हें खुरों के नीचे एक सफेद , लगभग 1 से 1.5 से.मी. मोटा, फोम जैसा गुदगुदा आवरण होता है ( जैविक रूप से यह कार्टिलेज है ), धीरे-धीरे हवा के सम्पर्क में आकर यह सख्त होता जाता है , लेकिन अनुभवी गौ-पालक इसको उँगलियों से कुतर कर हटा देते हैं,  जिससे बछड़ा/बछडी को खड़े होने में आसानी हो, इस बीच गाय अपने शिशु को सामान्य से अधिक बल लगाकर चाटती रहती है जिससे नवजात का रक्त-संचार व्यवस्थित हो जाये , यह एक किस्म की मालिश ही है ।  

इस जगह फिर अपने क्षेत्र में प्रचलित एक प्रथा का उल्लेख करना चाहता हूँ , गौ-पालक दुहने के अंदाज़ में गाय के एक थन को पकड़कर दूध की एक धार ( इस धार को हमारे यहाँ ' सेंट' कहते हैं ) धरती पर अर्पित करता है, इसका आशय है नवजन्म पर प्रकृति का अभिनन्दन । 

धीरे-धीरे गिरने-उठने की कोशिश करता हुआ नवजात खड़ा हो जाता है और प्रकृतिदत्त वृत्ति से माँ के अगले-पिछले पैरों के बीच थन ढूँढने की कोशिश करता हुआ अपने प्रयास में सफल हो जाता है और फिर दूध पीने की प्रक्रिया में गोवत्स/वत्सा के मुंह से जो " चुक-चक" जैसी आवाज़ निकलती है संसार का सारा संगीत उसमें एकाकार हो जाता है .....कण-कण विभोर हो जाता है !!

'विनायक' और आपका अपना अमित 
किसी नवीनता का जन्म अपने साथ बहुत से मनोभावों का प्रवाह ले के चलता है और उस समय वैराग्य की पर्वतीय विशालता भी अनुराग की अदृश्य सूक्ष्मता के सामने तुच्छ प्रतीत होने लगती है ।  किसी शांत सी भोर में सुदूर पूर्व से सूरज का आगमन , किसी अंकुर का बीजकोश से अंगडाई लेना, किसी डाल पर अपना वजूद हवाओं में बिखरा देने को आतुर फूल का खिलना और प्रकृति के पालने में किसी नवजीवन का आगमन इन सब में एक समानता है , ये बरबस याद दिलाते हैं कि अभी जीवन में रंग शेष है , संगीत शेष है , सुगंध शेष है , नृत्य शेष है ...........

तब तक के लिए आज्ञा दीजिये , अमित के प्रणाम स्वीकार करें..... 


16 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ४५ साल का हुआ वो 'छोटा' सा 'बड़ा' कदम - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  2. स्नेहिल शिवम जी , इस पोस्ट को आज के ब्लॉग बुलेटिन में सम्मिलित करने हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ ! कृपया मेरे अभिवादन स्वीकार करें .. बहुत बहुत धन्यवाद !!

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रकृति-माँ के चिद्रूप का मन-भावन निरूपण ,जिसने जीव-मात्र के नारी तत्व को सृजन का सूत्र पकड़ा कर , अपार ममता से पूरित कर दिया .

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद प्रतिभा जी , आपने अपना अमूल्य समय देकर इसे पढ़ा, आभारी हूँ | जिसको खुद अनुभव किया हो वो तो गूंगे का गुड़ है , शब्दों में पिरोने की कोशिश तो अपनी तरफ से मैंने पूरी की है , लेकिन उन भावनाओं को बाँधने में शायद अभी भी नाकाम हूँ ...........अनुरोध मात्र कि एक दृष्टि अन्य आलेखों पर भी !!

      हटाएं
  4. उत्तर
    1. स्मिता जी, ह्रदयश: धन्यवाद , माँ के भरपूर दुलार कर लेने के बाद जब नवागत अपने उत्सुक नयनों से इस दुनिया को देखता है वह अनुभव तो वर्णन से परे है.......

      हटाएं
  5. आदरणीय सुशील जी, शत-शत धन्यवाद जो मैं आपका बहुमूल्य समय कृपा स्वरूप पा सका !!

    जवाब देंहटाएं
  6. कितना सुंदर वर्णन है बछडे के जन्म का. आभार इसके लिये।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. माननीया आशा जोगळेकर जी, हार्दिक साधुवाद !! कृपया मेरे प्रणाम स्वीकार करें

      हटाएं