कविता का जन्म निश्चय ही करुणा से हुआ है | किसी घटना से जब मानव मन के अंतरतम स्तर पर स्पर्श होता है तो काव्य प्रकट हो जाता है | इस विश्व का प्रथम पौरुषेय काव्य ग्रन्थ महर्षि वाल्मीकि की रामायण को कहा जाता है | महर्षि वाल्मीकि को इसी लिए आदिकवि भी कहा जाता है |
रामायण में ही उल्लेखित है कि एक बार जब आदिकवि स्नान के लिये वन प्रान्त में गये तो वहाँ की सुषमा को निरखते हुए उन्होंने एक वृक्ष पर प्रणयातुर क्रौंच ( सारस ) युगल को देखा, काम के वशीभूत होकर वह खग-दम्पत्ति प्रेमालाप में मग्न था, तभी बहेलिये के चलाये एक तीर ने क्रौंच को वेध डाला, ह्त्प्राण पक्षी धराशायी हो गया |
अभी उस दम्पत्ति का प्रेमगान पूर्ण भी नहीं हो पाया था, अभी वह दोनों अपने पंखो को पसारे अपने आनन्द नृत्य में उन्मत्त ही थे और प्रियतमा का जीवन-आधार रक्त से लथपथ, छटपटाता हुआ काल के गाल में समा जाने को उत्सुक भूमि पर तड़प रहा था | क्रौंची भीषण आर्तनाद कर उठी, काल की यह निष्ठुर लीला देखकर, खग-पत्नी का यह प्रस्तर प्रगालक करुण विलाप सुनकर और इस पाप पूरित हिंसा कर्म का वीक्षण कर महामुनि शोकाकुल हो गए, उनका हृदय भर आया और अकस्मात उनके मुंह से यह श्राप निकल पड़ा :-
‘ मा निषाद प्रतिष्ठाम त्वमगम: शाश्वती: समा:
यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी: काममोहितम | ’
( अर्थ : रे व्याध ! कामपीड़ित क्रौंच के जोड़े में से तूने एक को मारा, अतएव अब तू संसार में बहुत दिन न रहेगा | अर्थात तेरा शीघ्र नाश हो )
जगत् का यह पहला श्लोक था, श्रापरूपी यह वचन छंदोंबद्ध था, विश्व में इसके पूर्व वाणी छंदोंबद्ध न थी | इस प्रकार पृथ्वी में काव्य का जन्म हुआ जिसकी जननी करूणा थी, है और रहेगी |
चलते-चलते आपको बताना चाहूँगा कि आज 'विश्व कविता दिवस ' है ; यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) ने प्रति वर्ष 21 मार्च को कवियों और कविता की सृजनात्मक महिमा को सम्मान देने के लिए यह दिवस मनाने का निर्णय किया। यूनेस्को ने 21 मार्च को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा वर्ष 1999 में की थी। विश्व कविता दिवस के अवसर पर भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी की ओर से सबद-विश्व कविता उत्सव का आयोजन किया जाता है।