यह आकाशवाणी है अब आप देवकीनंदन पाण्डेय से समाचार सुनिये !
बचपन से जुड़ी हुई किसी याद पर लिखना कभी कभी बहुत कठिन हो जाता है मेरे लिये, क्योंकि लिखते समय कभी कभी एक ही शब्द पर अटक जाता हूँ , उस से जुड़ा हुआ कोई चित्र देखता हूँ , कोई गीत सुनता हूँ और पता चलता है कि एक घंटा हो गया और लिखा कितना एक पंक्ति और कभी कभी तो वो भी नहीं | इस मौजूदा चिट्ठे का मकसद है रेडियो से जुड़ी हुई अपनी यादों को जिनमे कुछ जानी-पहचानी हैं तो कुछ अनजानी उनको आपके सामने लाना | इस चिट्ठे के माथे पर जिनका नाम लिखा है "देवकीनंदन पाण्डेय " , वो आकाशवाणी के अपने जमाने के मशहूर समाचार वाचक थे , हालाँकि मुझे तो कभी उनकी आवाज़ में कुछ सुनने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ लेकिन इनके बारे में कहा जाता है कि जब ये खबरें पढते थे तो मानो रेडियो थर्राने लगता था | पाण्डेय जी का परिचय जब श्रीमती इंदिरा गांधी से करवाया गया तो श्रीमती गांधी ने मुस्कुराते हुये कहा " अच्छा, तो आप हैं हमारे देश की न्यूज वोईस " | संजय गांधी के आकस्मिक निधन का समाचार वाचन करने के लिये सेवानिवृत पाण्डेय जी को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था |
खैर, तो रेडियो मनोरंजन, जानकारी , और प्रचार के उन चंद समावेशी साधनों में से एक है जिनकी चमक समय के साथ मद्धम नहीं हुई , इस जगह हम आपको फटाफट अपने देश में रेडियो का इतिहास बता दें और फिर आपको ले चलेंगे अपने साथ हम अपने बचपन में , मज़ा वाकई आने वाला है |
जून १९२३ ई. में अपने देश में रेडियो क्लब ऑफ बाम्बे नामक एक निजी प्रसारक ने हमारे देश का सर्वप्रथम रेडियो प्रसारण किया था , इसके पांच महीने बाद यानि नवम्बर १९२३ ई. में कलकत्ता रेडियो क्लब अस्तित्व में आया यह भी एक निजी संस्था ही थी | २३ जुलाई १९२७ को "इंडियन ब्रोडकास्टिंग कम्पनी ( Indian Broadcasting Company : IBC ) जो लगभग तीन वर्ष बाद , अप्रैल १९३० में ही "इंडियन ब्रोडकास्टिंग सेवा "( Indian Broadcasting Service ) में विलय यह हो गई, यह सेवा तत्कालीन उद्योग एवं श्रम विभाग के अंतर्गत कार्य करती थी | इस समय तक यह प्रसारण सेवा प्रायोगिक तौर पर ही कार्य कर रही थी | अगस्त १९३५ ई. में लियोनेल फील्डेन ( Lionel Fielden ) को भारत का प्रथम प्रसारण नियंत्रक बनाया गया |
आपने गौर किया हो या ना किया हो लेकिन अभी तक इन तमाम लम्बे-चौड़े नामों के बीच में कहीं पर भी हमारा कर्णप्रिय नाम "आकाशवाणी " नहीं दिखाई दिया | लीजिये, इंतज़ार की घडियां समाप्त हुई , सितम्बर १९३५ ई. में मैसूर में श्री एम.वी.गोपालास्वामी ने "आकाशवाणी" नाम से एक निजी रेडियो स्टेशन स्थापित किया | मैंने बहुत खोज की और पाया कि इन महापुरुष की स्मृति में हमने आजतक एक डाक-टिकिट भी जारी नहीं किया , हो सकता है मेरी जानकारी गलत हो , अगर आप के पास श्री गोपालास्वामी की स्मृति में किसी डाक-टिकिट या अधिकारिक स्मृति-चिन्ह जारी होने की जानकारी हो तो मुझे प्रेषित कर अनुग्रहीत करें | मुझे इन का एक चित्र प्राप्त हुआ है जो मैं यहाँ चस्पा कर रहा हूँ |
श्री एम.वी. गोपालास्वामी और इनका रेडियो स्टेशन "आकाशवाणी मैसूर (विठ्ठल विहार ) " |
अगले ही वर्ष ८ जून १९३६ ई. को सभी सरकारी, निजी प्रसारकों का राष्ट्रीयकरण करके "आल इण्डिया रेडियो" की स्थापना की गई , और इसे भारत के अधिकारिक राजकीय प्रसारणकर्ता का दर्जा दिया गया | स्वतंत्रता के बाद १९५६ ई. में इस "आल इण्डिया रेडियो" का नाम बदलकर "आकाशवाणी" किया गया और यह एक राष्ट्रीय प्रसारक के रूप में अस्तित्व में आया . महात्मा गांधी जयंती ( २ अक्टूबर ) १९५७ ई. में आकाशवाणी की "विविध भारती " प्रसारण सेवा की शुरुआत की गई , यहाँ यह जानना दिलचस्प होगा कि विविध भारती की स्थापना "रेडियो सीलोन " के व्यवसायिक प्रतिद्वंदी के रूप में की गई थी और हिंदी फ़िल्मी संगीत का प्रसारण इसका एक प्रमुख अवयव था और है | उम्मीद है कि इतिहास के इस कालखंड से आप उकताये नहीं होंगे , और गर्मागर्म चाय के साथ आपने इसका आनंद लिया होगा | तो अब ,
आओ हुजूर तुमको सितारों में ले चलूं ,
दिल झूम जाये ऐंसी बहारों में ले चलूं |
क्यों न आगे बढ़ने के पहले हम आकाशवाणी की यह हस्ताक्षर धुन सुन लें ,
आई ना कुछ याद और एक मुस्कुराहट ऐंसे ही मुस्कुराते रहिये , रेडियो से मेरा पहला परिचय हुआ अपने बब्बा ( दादा ) जी , स्व. श्री बाबूलाल नेमा की बैठकनुमा दुकान से , वहाँ एक बड़ा सा , वजन में किसी कदर १०-१२ किलो से कम का ना होगा ऐंसा भारीभरकम, बब्बा जी जैसा ही भव्य रेडियो सेट , रुकिए आपको दिखाते हैं कैसा दिखता है वो अंदर बाहर से :
वोल्व रेडियो सेट |
रेडियो लाइसेंस और उसकी शुल्क के टिकिट |
इन टिकिटों पर लगी मुहरों पर ध्यान दें तो पाते हैं कि इन पर १९६० से १९८० तक के तीन दशकों की दिनाँक मुद्रित है | और १ रु. से लेकर ५० रु. तक के मूल्य वर्गों के टिकिट हैं | ये थी साहब रेडियो की दीवानगी | इसके बाद यानि १९९० से अभी तक के रेडियो के सफर के बारे में मेरी आयुवर्ग के बहुत से मित्र परिचित होंगे , इसलिये हम अब यहाँ उसको नहीं दोहराते |
चलते चलते आपको दो बातें बता दें , पहली तो ये कि यह पाती लिखते हुये मैं विविधभारती में कार्यरत अपने हरदिलअज़ीज़ दोस्त युनूस खान साहब द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम " पिटारा" सुन रहा था और दूसरी ये कि १९७६ तक हमारे देश में दूरदर्शन "आकाशवाणी" का ही एक अंग था और संभवतः यही हमारी अगली चर्चा का विषय होगा |
aise hi radio se maine bhi bahut geet aur samachar sune hai ......bahut achhi jankari aur sansmaran bhi
जवाब देंहटाएंआदरणीया उपासना जी , बहुत बहुत धन्यवाद , मेरे ब्लॉग के अन्य लेख पढकर मुझे मेरे लेखन की त्रुटियों से अवगत करायें तो हार्दिक आभारी रहूँगा |
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा। मैंने १९८० से १९९० के दशक तक इंदौर आकाशवाणी के युववाणी से मञ्जूषा कार्यक्रम प्रस्तुत किया और आज भी यहाँ नाटक कलाकार हूँ, रेडिओ जैसा भी है आज भी ज़िंदा है भले ही आधुनिकता ने उसे फ़ास्ट कर दिया हो।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद , दिनेश जी , मेरा लेख आप तक पहुँच पाया और आप जो इस विधा में लम्बे समय से कार्यरत हैं तो आपकी सराहना से तो यह लेख सार्थक हो गया ! बहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंNice information dear Amit Thanks
जवाब देंहटाएंअरे श्याम भाई !! बहुत अच्छा लगा , आप यहाँ आये और यह आलेख पढ़ा , सच बहुत ज्यादा वाली खुशी हुई , बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंkafi achi suchana dene ke lia dhanyawad.
जवाब देंहटाएंsudhir singh sudhakar,delhi
SANYOJAK
MANZIL GROUP SAHITIK MANCH
MAI 70-80 KE DASAK ME REDIO KE DO PROGRAMME SUNKAR BADA HUA HUAN PAHALA CRICKET COMMENNTRY TATHA DUSARA AMIN SAYANI KA BINAKA GEET MALA ,APKI JANKARI AAJ MUJHE BACHPAN KE DIN ME WAPAS LE GAI,ESAKE LIA DHANYWAD.
जवाब देंहटाएंMAI DILI ME YEK AIS MANCH KA SANYOJAK HUAN JAHAN MANCH SE DUSARE KI RACHANA PADHI JATI HAI, APAKI JANKARI BHI SEAIR KI JA SAKATI HAI,MANCH SE JUDANA CHAHENGE KYA ?
sudhir singh sudhakar.sanyojak
manzil group sahitik manch,delhi
sudhirsinghmgwa@gmail.com
9953479583,9868216957
अमित जी, बड़ा ही आश्चर्य हुआ जब टैगलाइन पढ़ी "रेडियो का भी लाइसेंस होता था" एक बार के लिए तो विशवास नहीं हुआ कि क्या वाकई ऐसा हो सकता है...
जवाब देंहटाएंउत्सुकता बढ़ती चली गई, जब पूरा लेख पढ़ा और टिकट देखे तो विशवास हुआ कि हाँ किसी ज़माने मे ऐसा भी होता था..
आपका बहुत- बहुत शुक्रिया इतनी रोचक जानकारी देने केे लिए..
सर्वप्रथम बाबाजी 101 पुण्यतिथि पर सादर श्रद्धांजलि आकाशवाणी के बारे में तुम्हारे द्वारा संग्रहित लेख पढ़कर बेहद प्रसन्ना महसूस हुई इतना सारगर्भित संकलन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
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