दूसरी दुनिया के अवशेष : एक था सोवियत संघ :
साहित्य
"इस तरफ से गुज़रे थे काफ़िले बहारों के
आज तक सुलगते हैं ज़ख्म रहगुज़ारों के" - साहिर
1950 के दशक में तत्कालीन सोवियत राष्ट्रपति निकिता सर्गेइविच ख्रुश्चेव के काल में यह प्रकाशन हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओँ में प्रारम्भ हुये , और पुस्तकों के अलावा सोवियत भूमि, सोवियत संघ और सोवियत नारी नाम की पत्रिकाएँ, दर्जन भर अन्य पत्रिकाओं के साथ बहुत लोकप्रिय हुई , ये पत्रिकाएँ हिंदी व अंग्रेजी के अतिरिक्त अन्य करीब 25 देशी-विदेशी भाषाओँ में प्रकाशित होती थीं | ये मासिक आवृति वाली पत्रिकाएँ थीं, जो चिकने पन्नों पर बड़े आकार में मुद्रित होती थीं | इन पत्रिकाओं के माध्यम से सोवियत संघ की भौगोलिक परिस्थितियों और वहाँ के समाज एवं संस्कृति का परिचय मिलता था | भारतीय घरों तक इनकी पहुँच व्यापक थी |
सोवियत पत्रिकाएँ |
स्तालिन, ख्रुश्चेव और बाद में ब्रेजनेव के शासन में कट्टर साम्यवाद का वर्चस्व था और वो साहित्यकार जिनकी रचनायें साम्यवादी विचारधारा के विपरीत होती थी, उन रचनाओं को प्रतिबंधित करके लेखक को निर्वासित कर दिया जाता था | ऐंसा ही एक उपन्यास है अरबात के बच्चे जिसमें स्तालिन के समय की दमनकारी झलक मिलती है; फलस्वरूप इसके रचनाकार अनातोली रीबाकोव को भी अपने उक्त उपन्यास के नायक साशा पान्क्रातोव की भांति साइबेरिया में निर्वासन की सज़ा काटनी पड़ी | बोल्शेविक क्रांति से लेकर ब्रेजनेव के समय तक मात्र उन्हीं कृतियों का अनुवाद और प्रकाशन हुआ जो किसी ना किसी प्रकार साम्यवादी राज्य-व्यवस्था की श्रेष्ठता को प्रतिपादित करती थीं | उस समय के सोवियत शहरों में मुख्यत: मास्को में अनेक राजकीय प्रकाशनगृह जिनमें रादुगा प्रकाशन, प्रगति प्रकाशन एवं मीर प्रकाशन मुख्य हैं ,अपने अपने विषय ( कथा-उपन्यास, विज्ञान, गणित, और बहुत से अन्य विषय ) पर आधारित हिंदी में अनुदित पुस्तकें प्रकाशित करते थे | यहाँ पर कुछ उन अनुवादकों के नाम उल्लेखित करना भी तर्कसंगत होगा जिन्होंने रुसी व सोवियत गणराज्य की अन्य भाषाओँ से इस सामग्री को हिंदी में अनुदित करके इस विस्तृत परियोजना को सम्भव बनाया इनमें से कुछ हैं भीष्म साहनी ( प्रसिद्ध उपन्यास 'तमस' के लेखक ), मदनलाल 'मधु', सुधीर कुमार माथुर, संगमलाल मालवीय, विनय शुक्ला, मुनीश सक्सेना और त्रिभुवन नाथ |
सोवियत संघ में हिंदी में मुद्रित/प्रकाशित कुछ पुस्तकें |
यह सारी मुद्रित सामग्री सोवियत संघ की राजकीय विमानन सेवा एयरोफ्लोत द्वारा हमारे देश में आती थी | और थोड़ी बहुत मात्रा में नहीं, बल्कि इतनी भारी तादाद में, जिससे गोदाम के गोदाम भर जायें , इसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि सोवियत संघ के विघटन के 22 वर्षों के बाद भी यह पुस्तकें शेष हैं, और प्रयास करने पर आप आज भी इन्हें खरीद सकते हैं | यहाँ पर यह प्रश्न हमारे मन में उठ सकता है कि आखिर इतने वृहद स्तर पर भारत में इन पुस्तकों का वितरण और विक्रय कैसे सम्भव हुआ ? दरअसल पीपुल्स पब्लिशिंग हॉउस प्रा.लिमिटेड, दिल्ली और राजस्थान पीपुल्स पब्लिशिंग हॉउस प्रा.लिमिटेड, जयपुर . यह दोनों वितरक पूरे देश भर में इन किताबों का वितरण/विक्रय सम्भव बनाते थे, यह दोनों कम्पनियां भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रकाशन प्रकोष्ठ के पूर्ण स्वामित्व वाली कम्पनियां थीं |
अपने पूर्ववर्ती ब्रेजनेव के बाद , सोवियत संघ के अंतिम राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोव ने 1985 में सत्ता सम्हाली | उन्होंने पुनर्रचना और खुलेपन की नीतियों के रूप में राजनैतिक सुधार शुरू किये | इन नीतियों का स्पष्ट प्रभाव सोवियत साहित्य में भी दृष्टिगोचर होता है | 1930 के दशक में लिखे हुये अरबात के बच्चे और इसके जैसी अन्य कृतियों का प्रकाशनादि 1985 के बाद ही मुमकिन हो पाया |
बचपन से ही इन पत्रिकाओं और कुछ बड़ा होने पर सोवियत संघ के बाल साहित्य से अच्छा परिचय था, इसलिये मन में अक्सर यह सवाल खड़ा हो जाता था कि 1991 के बाद इस सबका क्या हुआ ? जिज्ञासावश अपनी एक दिल्ली यात्रा के दौरान , पीपुल्स पब्लिशिंग हॉउस प्रा.लिमिटेड, दिल्ली की एक खुदरा बिक्री दुकान जो कि कनाटप्लेस में आज भी है, में जा पहुँचा और वहाँ के बिक्री-प्रभारी श्री ऋषभ कुमार ( जो कि भा.क.पा. के सदस्य है ) से भेंट हुई जिन्होंने बताया कि विघटन के बाद मास्को के यह सारे प्रकाशन बंद हो गये और तब से वही पुस्तकें जो उनके गोदामों में संग्रहित थीं उन्हीं का विक्रय करते आ रहे हैं | कुछ अत्याधिक लोकप्रिय पुस्तकों का भारत में पुनर्प्रकाशन भी किया गया है; उदाहरण के लिए चित्र में आपको जो एक पुस्तक दिख रही है ' जहाँ चाह वहाँ राह ' ( उज्बेक लोककथा संग्रह ) उसका और कुछ अन्य किताबों का जिनमे अधिकतर कहानी संकलन ही हैं, उनका पुनर्प्रकाशन उन्होंने किया है | अतीत के इस कालखंड के बारे में जानना रोचक भी था और कुछ कसक भरा भी क्योंकि यह बालपन से जुड़ी हुई चीज़ थी | इस भेंट के दौरान हमने भी बचे हुये संग्रह में से जॉन रीड की दस दिन जब दुनिया हिल उठी, अलेक्साई तोल्स्तोय की आएलीता जैसी कुछ पुस्तकें या जिन्हें दूसरी दुनिया के अवशेष कहना ज्यादा सही होगा खरीदीं और घर को लौट चले |
तयशुदा कार्यक्रम के मुताबिक अगली चिट्ठी दूसरी दुनिया और भारतीय सिनेमा की कुछ भूली-बिसरी लेकिन आज भी ताज़ा गुलदस्ते जैसी महकती यादों को लेकर आयेगी | नक्श लायलपुरी साहब के शब्दों में -
तब तक के लिये अनुमति दीजिये , कृपया मेरे प्रणाम स्वीकार करें ............
अपने पूर्ववर्ती ब्रेजनेव के बाद , सोवियत संघ के अंतिम राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोव ने 1985 में सत्ता सम्हाली | उन्होंने पुनर्रचना और खुलेपन की नीतियों के रूप में राजनैतिक सुधार शुरू किये | इन नीतियों का स्पष्ट प्रभाव सोवियत साहित्य में भी दृष्टिगोचर होता है | 1930 के दशक में लिखे हुये अरबात के बच्चे और इसके जैसी अन्य कृतियों का प्रकाशनादि 1985 के बाद ही मुमकिन हो पाया |
बचपन से ही इन पत्रिकाओं और कुछ बड़ा होने पर सोवियत संघ के बाल साहित्य से अच्छा परिचय था, इसलिये मन में अक्सर यह सवाल खड़ा हो जाता था कि 1991 के बाद इस सबका क्या हुआ ? जिज्ञासावश अपनी एक दिल्ली यात्रा के दौरान , पीपुल्स पब्लिशिंग हॉउस प्रा.लिमिटेड, दिल्ली की एक खुदरा बिक्री दुकान जो कि कनाटप्लेस में आज भी है, में जा पहुँचा और वहाँ के बिक्री-प्रभारी श्री ऋषभ कुमार ( जो कि भा.क.पा. के सदस्य है ) से भेंट हुई जिन्होंने बताया कि विघटन के बाद मास्को के यह सारे प्रकाशन बंद हो गये और तब से वही पुस्तकें जो उनके गोदामों में संग्रहित थीं उन्हीं का विक्रय करते आ रहे हैं | कुछ अत्याधिक लोकप्रिय पुस्तकों का भारत में पुनर्प्रकाशन भी किया गया है; उदाहरण के लिए चित्र में आपको जो एक पुस्तक दिख रही है ' जहाँ चाह वहाँ राह ' ( उज्बेक लोककथा संग्रह ) उसका और कुछ अन्य किताबों का जिनमे अधिकतर कहानी संकलन ही हैं, उनका पुनर्प्रकाशन उन्होंने किया है | अतीत के इस कालखंड के बारे में जानना रोचक भी था और कुछ कसक भरा भी क्योंकि यह बालपन से जुड़ी हुई चीज़ थी | इस भेंट के दौरान हमने भी बचे हुये संग्रह में से जॉन रीड की दस दिन जब दुनिया हिल उठी, अलेक्साई तोल्स्तोय की आएलीता जैसी कुछ पुस्तकें या जिन्हें दूसरी दुनिया के अवशेष कहना ज्यादा सही होगा खरीदीं और घर को लौट चले |
तयशुदा कार्यक्रम के मुताबिक अगली चिट्ठी दूसरी दुनिया और भारतीय सिनेमा की कुछ भूली-बिसरी लेकिन आज भी ताज़ा गुलदस्ते जैसी महकती यादों को लेकर आयेगी | नक्श लायलपुरी साहब के शब्दों में -
" पलट कर देख़ लेना जब सदा दिल की सुनाई दे
मेरी आवाज़ में शायद मेरा चेहरा दिख़ाई दे "
तब तक के लिये अनुमति दीजिये , कृपया मेरे प्रणाम स्वीकार करें ............
सहेजने योग्य जानकारी.... आभार
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ.मोनिका जी, बहुत बहुत धन्यवाद !! आपका सदा स्वागत है
हटाएंबिक्री केंद्र का पता दें भाई
जवाब देंहटाएंआदरणीय पाण्डेय जी, जैसा कि मैंने अपने चिट्ठे में लेख किया है कि सोवियत संघ के विघटन के साथ ही मास्को स्थित यह प्रकाशन गृह बंद हो गये, इसलिए अब यह पुस्तकें उपलब्धता और खोज का विषय बन गई हैं, फिर भी जो पुस्तकें मेरे पास उपलब्ध हैं , मैं उनमें दिये भारतीय वितरकों के पते आपको दे रहा हूँ :
जवाब देंहटाएं( 1 ) पीपुल्स पब्लिशिंग हॉउस प्रा.लिमिटेड, जी-18, मरीना आर्केड, क्नॉट प्लेस, नईदिल्ली - 110001 , और
( 2 ) राजस्थान पीपुल्स पब्लिशिंग हॉउस प्रा.लिमिटेड, चमेलीवाला मार्केट , एम.आई. रोड , जयपुर 302001 ( राज. )
वाह क्या बात है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद :)
हटाएंबहुत काम लायक जानकारी!
जवाब देंहटाएं