संस्कृत , विश्व की सम्भवतः प्राचीनतम भाषा है। इसे ' देवभाषा ' और ' सुरभारती ' भी कहते हैं। संस्कृत विश्व की अनेक भाषाओं की जननी है। संस्कृत में सनातन धर्म के अतिरिक्त बौद्ध एवं जैन धर्म का साहित्य भी विपुल मात्रा में उपलब्ध है। संस्कृत मात्र धर्म संबंधी साहित्य की ही भाषा नहीं है , अपितु संस्कृत में विज्ञान ( भौतिक, रसायन, आयुर्वेद, गणित, ज्योतिषादि ) विषयों के ग्रन्थों की सूची भी छोटी-मोटी नहीं है।
संस्कृत भाषा जितनी ही पुरातन है, उतनी ही वह अपने को चिर नवीन भी बनाती आई है। विशाल वैदिक वांग्मय संस्कृत काव्य की अमूल्य निधि् है। कालिदास, भवभूति, माघ, भास, बाणभट्ट , भर्तृहरि जैसे महान् रचनाकारों की कृतियाँ संस्कृत की उदात्तता का परिचय देती हैं। इनके अलावा बहुत ऐसे अज्ञात कवि हुए हैं जिन्होंने सामान्य जन की छोटी-छोटी इच्छाओं, सपनों एवं कठिनाइयों को भी स्वर दिया है। संस्कृत के आधुनिक लेखन में यह लोकधारा और मुखर हुई है। यही नहीं संस्कृत वर्तमान जीवन और हमारे संसार को समझने पहचानने के लिये भी एक अच्छा माध्यम बनने की क्षमता रखती है।
आधुनिक भाषा-विज्ञान की दृष्टि से संस्कृत हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की हिन्द-ईरानी शाखा की हिन्द-आर्य उपशाखा में शामिल है, । अनेक लिपियों में लिखी जाती है, जिनकी प्राचीन लिपियों में 'सरस्वती ( सिन्धु ) ' और ' ब्राह्मी लिपि' एवं आधुनिक लिपियों में 'देवनागरी' प्रमुख है।
किसी भी भाषा के अंग प्रत्यंग का विश्लेषण तथा विवेचन व्याकरण (ग्रामर) कहलाता है। व्याकरण वह विद्या है जिसके द्वारा किसी भाषा का शुद्ध बोलना, शुद्ध पढ़ना और शुद्ध लिखना आता है। किसी भी भाषा के लिखने, पढ़ने और बोलने के निश्चित नियम होते हैं। भाषा की शुद्धता व सुंदरता को बनाए रखने के लिए इन नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। ये नियम भी व्याकरण के अंतर्गत आते हैं। व्याकरण भाषा के अध्ययन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। व्याकरण का दूसरा नाम "शब्दानुशासन" भी है। वह शब्दसंबंधी अनुशासन करता है - बतलाता है कि किसी शब्द का किस तरह प्रयोग करना चाहिए। भाषा में शब्दों की प्रवृत्ति अपनी ही रहती है; व्याकरण के कहने से भाषा में शब्द नहीं चलते। परंतु भाषा की प्रवृत्ति के अनुसार व्याकरण शब्दप्रयोग का निर्देश करता है। यह भाषा पर शासन नहीं करता, उसकी स्थितिप्रवृत्ति के अनुसार लोकशिक्षण करता है। व्याकरण का महत्व यह श्लोक भली-भाँति प्रतिपादित करता है :
यद्यपि बहु नाधीषे तथापि पठ पुत्र व्याकरणम्।
स्वजनो श्वजनो माऽभूत्सकलं शकलं सकृत्शकृत्॥
अर्थ : " पुत्र! यदि तुम बहुत विद्वान नहीं बन पाते हो तो भी व्याकरण (अवश्य) पढ़ो ताकि 'स्वजन' 'श्वजन' (कुत्ता) न बने और 'सकल' (सम्पूर्ण) 'शकल' (टूटा हुआ) न बने तथा 'सकृत्' (किसी समय) 'शकृत्' (गोबर का घूरा) न बन जाय। "महाभाष्यकार " पतंजलि " ने ऋग्वेद की इस ऋचा से व्याकरण ( संस्कृत ) का स्वरूप बतलाया है :
चत्वारि श्रृंगात्रयो अस्य पादा द्वेशीर्षे सप्तहस्तासोऽस्य।
त्रिधावद्धो वृषभोरोरवीति महोदेवोमित्र्यां आविवेश॥ ( ऋग.४.५८.३ )
यद्यपि वैदिकी टीकाओं में इसकी व्याख्या भिन्न है किन्तु देखिये कितनी सुन्दरता से उन्होंने इसका व्याकरण के सन्दर्भ में भावार्थ किया है , वो इसकी व्याख्या करते हुए कहते हैं कि : " मनुष्य में एक वृषभ है , जो दिव्य गुणों से युक्त महान देव है। इसके चार सींग ( नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात ), तीन पैर ( भूत, भविष्यत और वर्तमान काल ), दो सिर ( नित्य और अनित्य शब्द ), सात हाथ ( सात विभक्तियाँ ), यह तीन स्थानों ( वक्ष, कंठ और मष्तिष्क ) पर बंधा हुआ बार-बार शब्द करता है। इस शब्द के देवता के साथ सायुज्य स्थापित करने के लिये हमें व्याकरण पढ़ना चाहिये ।"
आपके मित्र अमित ने संस्कृत-व्याकरण की एक पुस्तकमाला संकलित की है। इसकी सहायता से आप सुगमता पूर्वक हिन्दी से संस्कृत-व्याकरण का अध्ययन कर सकते हैं , आप इन पुस्तकों को डाउनलोड भी कर सकते हैं, सभी पुस्तकें पीडीएफ ( PDF) प्रारूप में हैं, जिन्हें आप Adobe Reader या दूसरे इसी प्रकार के सॉफ्टवेयर पर पढ़ सकते हैं , नीले रंग के मोटे ( Bold ) अक्षरों में दिया हुआ पुस्तक का नाम ही उसकी लिंक है जो कि एक अलग पृष्ठ में खुलेगी।
(१) संस्कृत व्याकरणम : यह पुस्तक पं.रामचन्द्र झा ‘व्याकरणाचार्य’ कृत है , इसके प्रकाशक चौखम्बा प्रकाशन, वाराणसी हैं। इसका आकार १५.९ मे.बा है । हिन्दी से संस्कृत सीखने की शुरुआत करने वालों के लिये यह उत्तम ग्रन्थ है ।
(२) संस्कृत व्याकरण प्रवेशिका : यह पुस्तक श्री बाबूराम सक्सेना द्वारा लिखित है। इसका आकार २१.६ मे.बा. है । उन जिज्ञासुओं के लिए एक अच्छी पुस्तक है जो पहले-पहल संस्कृत व्याकरण सीखना चाहते हैं ।
(३) प्रौढ़ रचनानुवाद कौमुदी : डॉ.कपिलदेव द्विवेदी आचार्य लिखित इस पुस्तक के प्रकाशक हैं विश्वविद्यालय प्रकाशन , गोरखपुर, उपरोक्त दोनों ग्रन्थों का अध्ययन करते समय यह पुस्तक विशेष रूप से प्रभावी है । इसका आकार ४४.३ मे.बा. है ।
(४) लघु सिद्धांत कौमुदी : यह संस्कृत-व्याकरण का सारभूत ग्रंथ है। इसके रचनाकार श्रीवरदराजजी हैं। कहते हैं कि लघु सिद्धांत कौमुदी संस्कृत व्याकरण का वह ग्रंथ है जिसका अध्ययन किए बिना संस्कृत का पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं होता और पढ़ लेने पर संस्कृत व्याकरण की योग्यता में संदेह नहीं रहता। यह ग्रन्थ मूलत: संस्कृत में ही है जिसकी संस्कृत व हिन्दी में अनेक व्याख्याकारों द्वारा विभिन्न व्याख्यायें प्रस्तुत की गईं हैं। हिन्दी में इस ग्रन्थ की सम्भवत: सबसे विशद व्याख्या श्रीभीमसेन शास्त्री द्वारा प्रस्तुत है जो भैमी व्याख्या के नाम से प्रसिद्ध है। यह छ: खंडों में उपलब्ध है। भैमी प्रकाशन , दिल्ली द्वारा प्रकाशित है। इसके सभी खंडों का वर्णन निम्नानुसार है :
४.२ - लघु सिद्धांत कौमुदी भाग - २ : आकार - ६.५ मे.बा.
४.३ - लघु सिद्धांत कौमुदी भाग - ३ : आकार - २०.९ मे.बा.
४.४ - लघु सिद्धांत कौमुदी भाग - ४ : आकार - २३.८ मे.बा.
४.५ - लघु सिद्धांत कौमुदी भाग - ५ : आकार - १५.० मे.बा.
४.६ - लघु सिद्धांत कौमुदी भाग - ६ : आकार - १६.६ मे.बा.
संस्कृत व्याकरण के जिज्ञासुओं को लघु सिद्धांत कौमुदी का अध्ययन अवश्य ही करना चाहिए । अब एक पुस्तक उनके लिए भी जो संस्कृत व्याकरण का अध्ययन अंग्रेजी के माध्यम से करना चाहते हैं।
(५) श्री रामकृष्ण गोपाल भंडारकर द्वारा लिखित First Book of Sanskrit और Second Book of Sanskrit
उपरोक्त वर्णित पुस्तकों का अध्ययन करने के उपरांत व्याकरण का ज्ञान भली-भांति हो जाता है, तथापि बृहद अध्ययन के इच्छुक महानुभावों को महर्षि पाणिनी की अष्टाध्यायी और महर्षि पतंजलि की पाणिनीयव्याकरणमहाभाष्यम का अध्ययन करने की अनुशंसा विद्वान करते हैं ।
चलते-चलते आपको बता दें कि राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान ( विश्वविद्यालयवत ), पत्राचार के द्वारा एक द्वि-वर्षीय संस्कृत पाठ्यक्रम का संचालन करता है , इसकी विस्तृत जानकारी के लिये यहाँ चटका लगायें। हमेशा की तरह मुझे आपके अमूल्य सुझावों की बहुत जरूरत है , उम्मीद है आप मुझे इनसे पुरुस्कृत करेंगे । तब तक के लिए आज्ञा दीजिये , अमित के प्रणाम स्वीकार करें.....
( दावात्याग : लेखक ( ब्लॉग लेखक ) का यह लेख लिखने का एकमात्र उद्देश्य संस्कृत का प्रचार-प्रसार, ज्ञानवर्धन है। इस लेख/पुस्तकों का किसी भी प्रकार व्यवसायिक उपयोग अनुचित है । लेखक उपरोक्त वर्णित पुस्तकों का लेखक/अनुवादक/प्रकाशक नहीं है। लेखक इन पुस्तकों की मुद्रित प्रतियाँ क्रय करने की अनुशंसा करता है, पुस्तकों के चयन में लिप्याधिकार का उल्लंघन ना हो इसका यथासम्भव प्रयत्न किया गया है फिर भी तत्संबंधी किसी भी वाद के लिये संबंधित वेबसाइट उत्तरदायी है ना कि ब्लॉग लेखक, यह लेख इन्टरनेट पर उपलब्ध पुस्तकों की कड़ियों का संकलन मात्र है । धन्यवाद )