पहले-पहल यही कह दूँ कि यह कोई समीक्षा नहीं है, क्योंकि इन कृतियों को लेकर मैं समीक्षात्मक हो ही नहीं सकता और एक बात यह भी है कि मेरी इतनी क्षमता नहीं कि इन पर कोई समालोचना प्रस्तुत कर सकूं । समझ लीजिये कि यह आंतरिक प्रसन्नता है जिसे मैं आप तक पहुँचाने से अपने आप को रोक नहीं पा रहा हूँ ।
पहली किताब है "एक पहर दिनमान शेष है", यह श्री निर्मल चंद 'निर्मल' जी का पन्द्रहवां प्रकाशित संग्रह है ।
जब ककहरा भी ठीक से ना आता हो तब से एक कवि के कवितापाठ को सुनना, चाहे उसका एक शब्द भी पल्ले ना पड़ता हो और फिर वयस आ जाने पर यह मालूम होना कि यह भी एक संस्कार था जिसमें तुम्हें दीक्षित किया गया , कुछ इसी प्रकार का अनुभव रहा है मेरा दादाKabi Nirmal Chand Nirmalजी, के साथ. एक शिक्षक , एक कवि होने से पहले वो मेरे लिये परिवार के एक बुजुर्ग हैं।
दादा की अशेष ऊर्जा "उठाओ कुदाली" से लेकर "एक पहर दिनमान शेष है" तक अविरल प्रवाहमान है | छंदों से लेकर मुक्तकों तक दादा की कलम संप्रभावी रूप से गतिमान है, दादा के लिये विषयों का कभी कोई बंधन नहीं रहा प्रस्तुत कृति के सन्दर्भ में दादा कहते हैं "जहाँ सृजन हुआ, विसर्जन उसकी नियति है" . किताब से शीर्षक कविता का एक अंश जिसको दादा ने आत्मकथ्य स्वरूप कहा है :
" तैयारी में क्या ले जाना सोच समझकर आगे बढ़
जग से बहुत लड़ा है तूने अपने से भी थोड़ा लड़
चेहरे के सब दाग मिटा दे कुंठाओं को तिरोहित कर
सहज भाव अब धारण कर ले खोटी करनी पर मत अड़
एक पहर दिनमान शेष है ढलने की बेला आ गई
सजधज ले तू साजन के घर चलने की बेला आ गई | "
दूसरी कृति है श्रीमती सौदामिनी वेंकटेश जी की "खामोश लबों से" ,
श्रीमती Soudamini Venkateshजी की 'खामोश लबों से' के हाथों में आते ही आत्मीयता के सुखद अहसास से सरोबार हो गया हूँ , शुक्रिया अता करने के लिये अल्फाज़ नहीं मिल रहे हैं | आपका तखल्लुस है "अजनी " , पेश है इसी किताब से आपकी नज़्म का एक भिगो देने वाला हिस्सा :
" हम तुम्हें इतना प्यार करते हैं
एक महर की गुहार करते हैं
तेरे दर पे 'अजनी' को जगह जो मिले
जिन्दगी जीने की वजह ही मिले
यह दुआ बार बार करते हैं
एक महर की गुहार करते हैं
हम तुम्हें इतना प्यार करते हैं "
मुझे इस आत्मीयता, स्नेह और आशीष से तरबतर कर देने का शुक्रिया, फिर-फिर शुक्रिया आप दोनों ही दीर्घायु हों , शतायु हों और हम सदा आपके स्नेह की छाँव तले रहें, अमित के प्रणाम स्वीकार करें ........
अमित जी आपका हृद पूर्वक आभार ---इस महान हस्सती श्री निर्मल चंद निर्मल जी को सादर नमन---प्रेरक हाइन युवा पीडी के लिए.आप ऐसे व्यक्ति से जुड़ें हैं ये आपका सौभाग्य है----उनकी उर्जा इसी प्रकार प्रवाहित होती रहे प्रभावित करती रहे ----
जवाब देंहटाएंआपने मेरी इस प्रथम कृति की इतनी प्रशंसा की और निर्मल जी के साथ इसे प्रस्तुत किया ये मेरा अहो भाग्य है अमित जी ---आपके इस स्नेह के आगे मैं नट मस्तक हूँ----सदैव आभारी रहूंगी ------बनाए रखिए ये स्नेह दृष्टि सदैव
आपका हार्दिक स्वागत है , वन्दन है , अभिनन्दन है !! यह गंगा उल्टी ना बहाइये , विनयावनत होने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त होने दीजिये, यही स्नेह, संरक्षण , बनाये रखें और हम सदैव आपसे सीखते रहें यही मंगलकामना है |
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