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शुक्रवार, 7 नवंबर 2014

झाँकी हिंदुस्तान की : नरसी की हुण्डी


भारत दर्शन : नरसी की हुण्डी   

|| झाँकी हिंदुस्तान की :- इस श्रंखला की पाँचवी पाती ||

इससे पूर्ववर्ती पाती के लियें देखें : झाँकी हिंदुस्तान की - कैसे हो द्वारकाधीश


गतांक से आगे :- 
                 
             इस श्रंखला की यह पाँचवी चिठिया प्रस्तुत करने में गैर मामूली देर हो गई जिसके लिए मैं शर्मिंदा हूँ , आपने इस बीच 'एक:'  ब्लॉग पर प्रकाशित अन्य आलेख पढकर मेरा जो उत्साहवर्धन किया है, उसके लिए मैं आपका ह्रदय से आभारी हूँ । हम अपने सफर को शुरू करें उसके पहले आज के इस स्थान से जुड़ी एक छोटी सी कहानी आप को सुनाना चाहता हूँ :

     गुजरात में एक बड़े मूर्धन्य कवि-संत हुए हैं ' नरसिंह मेहता ' ( नरसी ), हिन्दी में जो स्थान सूरदास जी का है, गुजराती के भक्ति-काव्य में वही स्थान इन्हें प्राप्त है| इनके जीवन से जुड़ी एक घटना है एक बार कुछ यात्री जूनागढ़ आये। उन्हें द्वारिका जाना था। पास में जो रकम थी, वह वे साथ रखना नहीं चाहते थे, क्योंकि उस समय जूनागढ़ से द्वारिका का रास्ता बीहड़ था और चोर-डाकुओं का डर था। वे किसी सेठ के यहां अपनी रकम रखकर द्वारिका के लिए उसकी हुंडी ले जाना चाहते थे। उन्होंने किसी नागर भाई से ऐसे किसी सेठ का नाम पूछा। उस आदमी ने मज़ाक में नरसी का नाम और घर बता दिया। वे भोले यात्री नरसी के पास पहुंचे और उनसे हुंडी के लिए प्रार्थना करने लगे। नरसी ने उन्हें बहुत समझाया कि उनके पास कुछ भी नहीं है, परन्तु वे माने ही नहीं। समझे कि मेहताजी टालना चाहते हैं। आखिर नरसी को लाचार होना पड़ा। पर वह चिट्ठी लिखते तो किसके नाम लिखते? द्वारिका में श्रीकृष्ण को छोड़कर उनका और कौन बैठा था! सो उन्होंने उन्हीं के नाम (शामला गिरधारी ) हुंडी लिख दी। यात्री बड़ी श्रद्धा से हुंडी लेकर चले गये और इधर नरसी चंग बजा-बजाकर 'मारी हुंडी सिकारी महाराज रे, शामला गिरिधारी।' गाने लगे। यात्री द्वारिका पहुंचकर सेठ शामला गिरधारी को ढूंढते-ढूंढ़ते थक गये, पर उन्हें इस नाम का व्यक्ति न मिला। बेचारे निराश हो गये। इतने में उन्हें शामला सेठ मिल गये। कहते हैं कि स्वयं द्वारिकाधीश ने ही शामला बनकर नरसी की बात रख ली थी। ऐंसे भक्तों और उनके भगवान की जय हो ।  

     अब हम बेट-द्वारका जाने वाले रास्ते पर आगे बढ़ रहे थे, बस हमें ओखा पोर्ट तक ले जाने वाली थी  । हम अभी-अभी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करके ही आये थे , मीठापुर के आस-पास बस की खिड़की से आने वाली ठंडी हवा से कुछ-कुछ आँखे मुंदी ही थी कि अचानक एक तेज बदबू से सामना हुआ , जिज्ञासावश हमने उस दुर्गन्ध के उद्गम का पता लगाने के लिए बाहर झाँका तो पाया कि सड़क के दोनों तरफ मत्स्योद्योग चलता हैं जहां बड़ी भारी तादाद में मछलियाँ बांस के बने रैकों पर धूप में सुखाई जाती हैं ।  हमारे सभी सहयात्री अपनी नाकों पर रुमाल रखे हुए थे , यही सिलसिला कुछ किलोमीटर तक चलता रहा और वह अप्रिय गंध बराबर आती रही । अब हम ओखा पोर्ट पहुँच गए , हमारी बसें वहां पार्किंग में खड़ी हो गई, पोर्ट के यात्री रिसेप्शन में ओखा पोर्ट ट्रस्ट की कैंटीन में हमने चाय पी और और बंदरगाह पर पहुंचे । अब हमारे सामने सिंधु (अरब) सागर अपने पूरे ठाठ के साथ मौजूद था । यहाँ से बेट-द्वारका जाने के लिए मोटरबोट से एक छोटी सी लगभग पाँच कि.मी. की समुद्री यात्रा करनी पड़ती है ।  

     यहाँ पर सभी मोटरबोट लकड़ी की ही एक बड़ी नाव जैसी थीं, जो मोटर से चलती थीं । तभी समुद्र में हमें इस तरफ आती हुई सफेद सी मोटर लांच दिखी हमने निश्चय कर लिया कि अगर यह बेट-द्वारका जाती होगी तो इसी से चलेंगे, 8-10 मिनिट में वो किनारे आकर लगी तो हमने देखा कि वह गुजरात मैरीन बोर्ड की मोटरलांच है जिसका नाम "गोमती" है , यह भी पता चला कि यह वहीं आने-जाने के लिए है । नावों में तो पटियों पर ही बैठकर जाना होता, लेकिन इसमें सीटें थीं । किराया दोनों का एक जैसा ही था रु. दस , वहीं पर टिकिट लेकर हम सवार हो गये ।    

                                 

     जब निर्धारित संख्या में यात्री आ गये तो  हमारा छोटा सा समुद्री सफर शुरू हुआ, सागर का विस्तार देखते हुए हम अपने गंतव्य को जा रहे थे, और दिमाग में गूँज रही थी शीन काफ़ निज़ाम की नज्म -

 समुन्दर
तुम अज़ल से गुनगुनाते जा रहे हो
मैं अज़ल से सुन रहा हूँ
एक ही नग्मा
एक सी ही बहार
लफ्ज़ भी वैसे के वैसे 

     यह भी मालूम हुआ कि इसी समुद्री रास्ते से पाकिस्तान का कराची बंदरगाह लगभग दो घंटे की दूरी पर है , एक तरह से हम भारत की समुद्री सरहद पर थे, वैसे अंतर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार किसी देश की समुद्री सीमा तट से 12 समुद्री मील ( लगभग 22. 22 कि.मी.) तक होती है । कहा जाता है कि बेट-द्वारका ही मूल द्वारका है जिसका बहुत सारा हिस्सा जलमग्न हो चुका है । हमारी लांच इस किनारे आकर लगी यानि हम बेट द्वारका पहुँच गए, अब यहाँ से हमें लगभग 10 मिनिट का पैदल रास्ता तय करके पहुँचना था "श्री द्वारकाधीश मन्दिर" इससे आगे की यात्रा अब हम अपनी अगली पाती में करेंगे। 

     चलते-चलते आपको बतातें चलें कि अरबसागर का यह भौगोलिक क्षेत्र ( आलेख में वर्णित ) कच्छ की खाड़ी कहलाता है  और बेट द्वारका को बेट शंखोधारा और रमणद्वीप के नाम से भी जाना जाता है । एक बार आपको फिर याद दिला दें कि अपने लेखन के विषय में मुझे आपके अमूल्य सुझावों की बहुत जरूरत है , उम्मीद है आप मुझे इनसे नवाजेंगे । अब अपने अमित को आज्ञा दीजिये, मेरे प्रणाम स्वीकार करें । 



  

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