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बुधवार, 30 दिसंबर 2015

उसी नमक के सहारे





" ह जीवन सबको मिलता है
एक पारी के रूप में
अपना खेल दिखाने को
सब पर छा जाने को 
कुछ बेहतर खेल दिखाते हैं
सब उन पर मोहित हो जाते हैं
क्योंकि वो भावों के सेवक नहीं 
उनका हर करतब एक सिद्ध प्रमेय
लिखे जाते प्रशस्ति काव्य उन्हीं के
संवेदी होना , सहनशील होना 
है इस पारी को खोना
पर कभी भीगे सीले पृष्ठ
भी पढ़े जायेंगे पढ़ते हुए
आंसुओं से भिगोये जायेंगे
मैं उसी नमक के सहारे जी रहा हूँ ! "


© डॉ. अमित कुमार नेमा


3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31-12-2015 को चर्चा मंच पर अलविदा - 2015 { चर्चा - 2207 } में दिया जाएगा । नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ
    धन्यवाद

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  2. वाह..
    एक पारी के रूप में
    अपना खेल दिखाने को
    सब पर छा जाने को
    बेहतरीन पंक्तियाँ
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन रचना और उम्दा प्रस्तुति....आपको सपरिवार नववर्ष की शुभकामनाएं...HAPPY NEW YEAR 2016...
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