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सोमवार, 13 अक्टूबर 2014

मन की मकड़ी



मन की मकड़ी,

सपनों के रेशम से
बुनती है,
अवसरों के कोनों में,
सतरंगे झिलमिलाते
पारदर्शी ताने-बाने,
समय की संचित धूल से,
आँखों में वो
लगते हैं किरकिराने,
लगती है कुलबुलाने
मन की मकड़ी !


छायाचित्र साभार   : - 
NGS Picture ID:171362/ Orb weaver spider; photo by Dick Durrance II

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