परसों म.प्र.मा.शि.मंडल ने कक्षा 10वीं का परीक्षा परिणाम घोषित किया था। आज जैसे ही अखबार की सबसे पहली खबर पर नजर गई तो मन दुःख, क्षोभ और वितृष्णा से भर उठा। यह खबर थी असफल आठ बच्चों ने आत्महत्या की। जिस उम्र में जीवन ठीक से शुरू भी नहीं होता वहाँ इनके जीवन पर पूर्णविराम लग गया। आखिर क्यों मजबूर हुए ये ऐसा कदम उठाने को ?
इसके पीछे कहीं ना कहीं बच्चों के, अभिभावकों, संबंधियों और करीबी लोगों की इनसे की गई अपेक्षाएँ जिम्मेदार हैं। वह बच्चों से चाहते हैं कि वे जो नहीं बन पाए या बन गए बच्चे भी वही बने। इन अपेक्षाओं और इनसे बने दबाव से बालमन में हताशा घर कर जाती है और वो अवसाद से घिर जाते हैं। हमें समझना चाहिए कि हर कोई हर कुछ नहीं बन सकता।
विविधता ईश्वरीय आदेश है। हर बच्चे में किसी ना किसी विषय-क्षेत्र के प्रति नैसर्गिक प्रतिभा होती है। अभिभावकों, संबंधियों और करीबी लोगों को चाहिए वो इसकी सावधानीपूर्वक समीक्षा करें और नौनिहालों को इसमें अपनी प्रतिभा-प्रदर्शन हेतु प्रोत्साहित करें। बच्चे भी पौधों जैसे होते हैं। आप उनकी जरूरत से ज्यादा कांट-छांट करेंगे वो आपके मनमुताबिक तो बन जायेंगे पर अपनी जिजीविषा खो देंगे। उन्हें प्यार-संभाल की धूप-बारिश दीजिये और प्राकृतिक ढंग से विकसित होने दीजिये। वो हरियांगे-लहरायेंगे फूलेंगे-फलेंगे।
साभार गीत : - गीतकार : इंदीवर, गायक : मोहम्मद अज़ीज, संगीतकार : राजेश रोशन, चित्रपट : आखिर क्यों (१९८५ )
आज की बुलेटिन भारत का पहला परमाणु परीक्षण और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअमित जी आपने बहुत ही सही कहा है जीवन से बढ़कर कुछ न्ही जीवन एक अमुल्य वरदान है जिसे कभी भी अपने आप समाप्त न्ही करना चाहिये जीवन में अनेक कष्ठ आते है उनका जुट कर मुकबला करना चाहिये जीवन से कभी भी हार नही माननी चाहिये आपका ये लेख प्रेरणा स्वरूप है आप इसी तरह से
जवाब देंहटाएंशब्दनगरी पर भी लिख सकते हैं जिससे यह और भी पाठकों तक पहुँच सके .........