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शुक्रवार, 20 जून 2014

तजुर्बा ए मर्दानगी



* तजुर्बा ए मर्दानगी *


" रंजिशें यहाँ मर्दों की औरतों से भुनाई जाती हैं,
कुचल कर तितलियाँ झाड़ों से लटकाई जाती हैं |

साड़ियाँ सलवारें बिंदियाँ और चूड़ियाँ मसल कर
मासूम शक्लें परियों की तेजाब से भिगोई जाती हैं |

घर, मोहल्ला, शहर या हो मैदान किसी जंग का
तजुर्बा ए मर्दानगी में औरतें काम लाई जाती हैं |

मर गईं जो तो चीख पुकार जुलूस मोमबत्तियाँ
गर जिंदा जो रहीं मौत तलक तड़पाई जाती हैं |

अक्सर इस देवी के देश के रहनुमा कहते हैं
क्या हुआ कुछ गलतियाँ लडकों में पाई जाती हैं | "


- डॉ.अमित कुमार नेमा

* यह रचना दिनांक 03/06/2014 को  फेसबुक पर प्रकाशित की थी | वहाँ से इसे एक पेज ने बिना अनुमति के  चुरा लिया , विडम्बना यह है कि उन्होंने इस रचना के साथ मेरा नाम प्रकाशित करना भी उचित नहीं समझा |