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सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

नशे में कौन नहीं है मुझे बताओ जरा


खिर नशे का इतना आकर्षण क्यों है? हर सरकार लगातार नशीले और मादक पदार्थ महँगे कर देती है; बावजूद इसके इनकी बिक्री में कोई कमी नहीं आती, बल्कि बढ़त ही होती है,जबकि नशा एक सामाजिक बुराई है।

नशे का इतना आकर्षण है ही इसीलिये क्योंकि नशा, व्यक्ति को उसकी वास्तविक जिन्दगी से दूर ले जाता है। काल्पनिक ही सही पर उस दुनिया में ले जाता है जहाँ सबकुछ उसके मुताबिक़ होगा। यह अधिकार वह अपने असली जीवन में नहीं पाता, अत: इसे प्राप्त करने को या महज ख्याली जीने को ही वह इसका सहारा लेता है, ( यह जानते होने के बाद भी कि नशा घातक है) फिर वो नशा चाहे शराब का हो, पैसे का हो या ज्ञान ही का क्यों ना हो !



दूध की दुकान किसी निर्जन स्थान में हो , दुकानदार भूखा मर जाएगा लेकिन दारु की दुकान काले कोस भी हो तो ग्राहक शिद्दत से जाएगा ! अगर हम इससे अधिक बड़े आकर्षण मानवीय जीवन में साकार कर लें तो नशा फिर ठहर नहीं सकता पर यह मात्र एक परिकल्पित (Hypothetical) बात है।

सभी सरकारें और व्यापारी इस बात को अच्छे से जानते हैं। इसलिए इन्हें महँगा करके अपनी जेबें भरते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि आदमी के गम और अरमान इतने हैं कि चाहे इनके दाम कितने भी बढ़ा दो मुनाफ़ा कम होने वाला नहीं है।

चित्र साभार : गूगल छवियाँ





गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

समय तुम




" भी टिक-टिक करती सुई 
सुन के भी अनसुनी कर दी 
कभी घड़ी पर हाथ रख दिया 
तो कभी काँटा ही थाम लिया


समय तुम मेरे वश में नहीं 
तुम्हें रोकने का पर हर 
जतन कर लिया 
कहीं तो ठहर जाओ 
कि अपना रूखा-सूखा सब कुछ 
हमने तुम्हारे नाम कर दिया

कभी घड़ी पर हाथ रख दिया 
तो कभी काँटा ही थाम लिया....."

© डॉ. अमित कुमार नेमा