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शनिवार, 13 जून 2015

टपकती खुशियाँ





" सुखों की सरिता निर्बाध
है यह कल्पना मात्र 
खुशियाँ हैं नल से टपकती, 
उन बूँदों के जैसी जो 
आप में से ही होकर हैं गुज़रती, 
हम वृहद धारा की प्रत्याशा में 
इन्हें बह जाने देते हैं 
वाष्पित हो फिर नहीं मिलती। "



चित्र : एलिजाबेथ व्हाइटमैन 
कविता : © डॉ. अमित कुमार नेमा

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