expr:class='"loading" + data:blog.mobileClass'>

सोमवार, 29 जून 2015

दीपदान


" ह माँ तुम भी बातें करने में बड़ी अच्छी हो । जब मैं बड़ा होकर बहुत सी जागीर जीतूँगा, तो मैं तुम्हारे लिए एक मन्दिर बनवाऊँगा। देवी के स्थान पर तुमको बिठलाऊँगा और तुम्हारी पूजा करूँगा। तुम अपनी पूजा करने दोगी ? " 




पुरानी तस्वीरें देखते हुए इस तस्वीर पर नजर पड़ी अकस्मात बहुत सी यादें ताज़ा हो गईं और आज आपके साथ वही साझा कर रहा हूँ। 

विद्यालय में वार्षिकोत्सव होना था। जिसमें होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में 'डॉ.रामकुमार वर्मा' कृत 'दीपदान' एकांकी भी शामिल की गई। डॉ.वर्मा मेरे प्रिय कवियों में से एक हैं, साथ-साथ आधुनिक हिंदी के एकांकीकारों में उल्लेखनीय स्थान रखते हैं। आप मूलत: छायावादी कवि हैं इसलिए काव्य की सरसता आपकी एकांकियों में बाहुल्यता से पाई जाती है। गर्व की बात यह भी है कि उनका और हमारा जन्म एक ही जिले में हुआ है। 

दीपदान, चित्तौड़ की एक वीरांगना 'पन्ना धाय' पर आधारित ऐतिहासिक एकांकी है। जिसमें पन्ना ने राज्य की रक्षा हेतु अपने एकमात्र पुत्र का बलिदान कर दिया। इसमें हमें वीर क्षत्राणी पन्ना धाय के पुत्र 'चंदन' का पात्र अभिनीत करने के लिए चुना गया। अब होता यह था कि कक्षाएँ समाप्त हो जाने के बाद वो बच्चे जिन्होंने किसी प्रोग्राम में हिस्सा लिया है; और शिक्षक रिहर्सल के लिए रुक जाया करते थे। कुछ सहपाठी दर्शक बनने भी रुक जाया करते थे। 

कार्यक्रम फरवरी में होना था पर हमारी तैयारियाँ अक्टूबर से ही शुरू हो गई थीं। हम सभी जोशो-खरोश से जुटे हुए थे। यहाँ तक कि अपने संवादों के अलावा दूसरे पात्रों तक के संवाद और उनका क्रम कंठस्थ हो गया; और तभी गणतन्त्र दिवस मनाने के बाद पता चला कि किसी कारणवश वार्षिकोत्सव नहीं होगा। हम सब बहुत मायूस हुए, पर क्या कर सकते थे ?  बालमन कुम्हला कर रह गया।  

अगले साल फिर से निर्धारित समय पर सालाना जलसे की तैयारियाँ शुरू हुईं। इस बार दीपदान को प्रधान प्रस्तुति के रूप में रखने का निर्णय लिया गया। हम सब अतिरिक्त उत्साह के साथ फिर से रिहर्सल करने लगे। यहाँ बताता चलूँ कि एकांकी में मेरी माँ पन्ना धाय का पात्र मुझसे एक कक्षा नीचे पढ़ने वाली एक छात्रा ने निभाया था। 

तयशुदा वक्त पर कार्यक्रम हुआ और इसमें दीपदान की प्रस्तुति सुपर-डुपर हिट रही। कुछ समय तक तो हमें नगर में हमारे नाम की जगह चंदन कह के ही पुकारा जाता रहा। संस्मरण के शुरू में दिया हुआ कथ्य इसी एकांकी से लिया गया चंदन का एक संवाद है; और छायाचित्र में आपका मित्र चंदन के रूप में। 



3 टिप्‍पणियां: