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रविवार, 29 मई 2016

बरेजों की भाजी



भारतीय संस्कृति में 'पान' के महत्व से हम सभी परिचित हैं। मुखवास के रूप में ही नहीं बल्कि इसका महत्व धार्मिक, प्रेम व सम्मान के तौर पर भी है। हमारे बुंदेलखंड में भी देशी पान की एक किस्म जिसे 'बंगला' भी कहा जाता है, बहुत प्रसिद्ध है। हालांकि परम्परागत रूप से इसे उगाने वालों की संख्या लगातार कम होती जा रही है।

पान का पौधा एक लता ( बेल ) होता है। इसे उगाने के लिए खेतों में घास-फूस से ढँके हुए खास तरह के मंडप ( शेड्स ) बनाये जाते हैं, जिन्हें 'बरेजे' कहा जाता है। जाति या व्यवसाय का परस्पर संबंध चाहे जो भी हो पर पुराने समय में हमारे यहाँ 'चौरसिया/तंबोली' समुदाय के लोगों को शायद इसी कारण 'बरई' कहा जाता था।




पान और बरेजों की चर्चा तो बहुत हुई अब आते हैं अपने विषय पर, यह जो पत्तेदार वनस्पति आप देख रहे हैं यही 'बरेजों की भाजी' है और खास है । यह सामान्य तौर पर खेत में पैदा नहीं की जा सकती लेकिन सिर्फ गर्मियों के मौसम में यह बरेजों में उगती/उगाई जाती है। हमारे यहाँ पास में एक गाँव है जहाँ पान की खेती होती है। वहाँ से रविवार को हमारे कस्बे के हाट बाजार में यह सब्जी बिकने आती है और हाथों-हाथ बिक जाती है।

इस शाक के संबंध में प्रचलित धारणा है कि यह औषधीय गुणों वाली व ठंडी तासीर की होती है, इसलिए गर्मियों में जरुर इसका सेवन करना चाहिए। वैसे इसका स्वाद अच्छा होता है। आप चाहे इसे भाजी के रूप में पकाएं या भजिया (पकौड़े) और भाजीबड़ा बना कर खाएं, वो दूसरी शाकों ( पालक वगैरह ) से ज्यादा स्वादिष्ट लगते हैं।




बुधवार, 18 मई 2016

सबसे बड़ी सौगात है जीवन



परसों म.प्र.मा.शि.मंडल ने कक्षा 10वीं का परीक्षा परिणाम घोषित किया था। आज जैसे ही अखबार की सबसे पहली खबर पर नजर गई तो मन दुःख, क्षोभ और वितृष्णा से भर उठा। यह खबर थी असफल आठ बच्चों ने आत्महत्या की। जिस उम्र में जीवन ठीक से शुरू भी नहीं होता वहाँ इनके जीवन पर पूर्णविराम लग गया। आखिर क्यों मजबूर हुए ये ऐसा कदम उठाने को ?

इसके पीछे कहीं ना कहीं बच्चों के, अभिभावकों, संबंधियों और करीबी लोगों की इनसे की गई अपेक्षाएँ जिम्मेदार हैं। वह बच्चों से चाहते हैं कि वे जो नहीं बन पाए या बन गए बच्चे भी वही बने। इन अपेक्षाओं और इनसे बने दबाव से बालमन में हताशा घर कर जाती है और वो अवसाद से घिर जाते हैं। हमें समझना चाहिए कि हर कोई हर कुछ नहीं बन सकता।




विविधता ईश्वरीय आदेश है। हर बच्चे में किसी ना किसी विषय-क्षेत्र के प्रति नैसर्गिक प्रतिभा होती है। अभिभावकों, संबंधियों और करीबी लोगों को चाहिए वो इसकी सावधानीपूर्वक समीक्षा करें और नौनिहालों को इसमें अपनी प्रतिभा-प्रदर्शन हेतु प्रोत्साहित करें। बच्चे भी पौधों जैसे होते हैं। आप उनकी जरूरत से ज्यादा कांट-छांट करेंगे वो आपके मनमुताबिक तो बन जायेंगे पर अपनी जिजीविषा खो देंगे। उन्हें प्यार-संभाल की धूप-बारिश दीजिये और प्राकृतिक ढंग से विकसित होने दीजिये। वो हरियांगे-लहरायेंगे फूलेंगे-फलेंगे।

साभार गीत  : -  गीतकार : इंदीवर, गायक : मोहम्मद अज़ीज, संगीतकार : राजेश रोशन, चित्रपट : आखिर क्यों (१९८५ )