भारतीय संस्कृति में 'पान' के महत्व से हम सभी परिचित हैं। मुखवास के रूप में ही नहीं बल्कि इसका महत्व धार्मिक, प्रेम व सम्मान के तौर पर भी है। हमारे बुंदेलखंड में भी देशी पान की एक किस्म जिसे 'बंगला' भी कहा जाता है, बहुत प्रसिद्ध है। हालांकि परम्परागत रूप से इसे उगाने वालों की संख्या लगातार कम होती जा रही है।
पान का पौधा एक लता ( बेल ) होता है। इसे उगाने के लिए खेतों में घास-फूस से ढँके हुए खास तरह के मंडप ( शेड्स ) बनाये जाते हैं, जिन्हें 'बरेजे' कहा जाता है। जाति या व्यवसाय का परस्पर संबंध चाहे जो भी हो पर पुराने समय में हमारे यहाँ 'चौरसिया/तंबोली' समुदाय के लोगों को शायद इसी कारण 'बरई' कहा जाता था।
पान और बरेजों की चर्चा तो बहुत हुई अब आते हैं अपने विषय पर, यह जो पत्तेदार वनस्पति आप देख रहे हैं यही 'बरेजों की भाजी' है और खास है । यह सामान्य तौर पर खेत में पैदा नहीं की जा सकती लेकिन सिर्फ गर्मियों के मौसम में यह बरेजों में उगती/उगाई जाती है। हमारे यहाँ पास में एक गाँव है जहाँ पान की खेती होती है। वहाँ से रविवार को हमारे कस्बे के हाट बाजार में यह सब्जी बिकने आती है और हाथों-हाथ बिक जाती है।
इस शाक के संबंध में प्रचलित धारणा है कि यह औषधीय गुणों वाली व ठंडी तासीर की होती है, इसलिए गर्मियों में जरुर इसका सेवन करना चाहिए। वैसे इसका स्वाद अच्छा होता है। आप चाहे इसे भाजी के रूप में पकाएं या भजिया (पकौड़े) और भाजीबड़ा बना कर खाएं, वो दूसरी शाकों ( पालक वगैरह ) से ज्यादा स्वादिष्ट लगते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें