" कभी टिक-टिक करती सुई
सुन के भी अनसुनी कर दी
कभी घड़ी पर हाथ रख दिया
तो कभी काँटा ही थाम लिया
समय तुम मेरे वश में नहीं
तुम्हें रोकने का पर हर
जतन कर लिया
कहीं तो ठहर जाओ
कि अपना रूखा-सूखा सब कुछ
हमने तुम्हारे नाम कर दिया
कभी घड़ी पर हाथ रख दिया
तो कभी काँटा ही थाम लिया....."
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " भारत और महाभारत - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंशिवम जी, ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " भारत और महाभारत - ब्लॉग बुलेटिन " , मे इस पोस्ट को शामिल करने हेतु आपका ह्रदयतल की गहराइयों से धन्यवाद :)
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