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मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

नदियाँ गाती हैं....

    आज फेसबुक पर एक समूह में किसी ने प्रश्न किया कि " निर्माल्य को कैसे विसर्जित करूँ , जल में प्रवाहित करूँ या गड्ढा खोद कर दबा दूँ ? " उनकी इस पोस्ट पर मैंने अपने विचार टिप्पणियों के रूप में व्यक्त किये , जो कि यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ :

      निर्माल्य पर थोड़ा सा गंगाजल छिडकिये और उसे किसी साफ़ जगह ( खेत आदि ) में गड्ढा खोद कर दबा दीजिये ! आजकल बड़े-बड़े प्रसिद्ध मंदिरों में भी निर्माल्य से खाद बनाई जा रही है, इसमें कुछ भी गलत नहीं है बल्कि दो फायदे हैं ( 1 ) . जलस्त्रोत प्रदूषण से बचेंगे ( 2 ) पवित्र और प्राकृतिक खाद प्राप्त होगी |

      मैं आपको अपना एक अनुभव बताता हूँ , मैंने एक-दो बार एक सार्वजनिक दुर्गोत्सव में पूजन किया है, नवमी के दिन हवन के पश्चात स्थापित प्रतिमा का पूजन कर, जवारे अर्पित करके प्रतिमा पर गंगाजल छिडक के प्रतिमा को प्रतीकात्मक रूप से थोड़ा सा हिलाया जाता है, शास्त्रानुसार तो प्रतिमा का विसर्जन यही माना गया है।  निर्माल्य में जो भी होता है ( फूल, पत्र, अगरबत्ती, भस्म आदि ) वह सब का सब जैवअपघटनीय (Biodegradable) होता है , अगर वह हानिकारक या विषाक्त होता तो हम उसे अपने आराध्य की पूजा में उपयोग ही क्यों करते ? उन सब का अपघटन होकर वो कम्पोस्ट में परिवर्तित हो जाएगा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बढायेगा ।



      वर्तमान में कल-कारखाने/बूचड़खाने हमारे पवित्र जलस्त्रोतों को प्रदूषित कर रहे हैं, किसी समय नदियाँ जरुर  गाती होंगी , आजकल तो उनकी बड़ी डरावनी सी आवाज़ सुनाई देती है कातर पुकार जैसी , हाँ, कोई समय रहा होगा जब नदियाँ पंचम स्वर में तान छेड़ती होंगी और हम पिल पड़े उन पर अपनी सारी गंद लेकर उनका सुरीला गला घोंटने को , बेचारी सहम गई फिर नदियाँ सकुचाते-सकुचाते नालियों में और कहीं-कहीं तो नदारदों में शुमार हो गई और हमारी आस्था से जुड़ी चीजों पर प्रश्नचिन्ह लगाये जाते हैं,  लेकिन मेरा मानना है कि  जिस समय बुजुर्गों ने इन प्रक्रियाओं ( निर्माल्य के जल विसर्जन ) का गठन किया था उस समय जनसंख्या इतनी अधिक नहीं थी, कल-कारखाने नहीं थे, रसायनों का प्रयोग नहीं होता था, नदियाँ सतत प्रवाहशील थीं उन पर बाँध आदि नहीं बांधे गए थे ।

      अब अगर हम कुछ सकारात्मक कदम उठायें जैसे कि निर्माल्य आदि को नदियों में विसर्जित करना बंद कर दें तो हम और अधिक मजबूती से सरकार और दूसरे लोगों को इस बात के लिए मजबूर कर सकते हैं कि हमने तो इतना बड़ा कदम उठाया है अब इन औद्योगिक इकाइयों पर भी नकेल कसी जाए कि वो इन विषाक्त अवशिष्ट पदार्थों को जलस्त्रोतों में डालना बंद करें । 


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