हमारे निजस्वरूप आत्मन : सादर जयहिंद,
कुछ दिनों पहले किसी ने कहा कि मैं 'अवसाद' पर कुछ लिखूँ , इस विषय पर कुछ कहूँ इसके पहले मैं आपको एक बात बताना चाहता हूँ । हमारे शरीर में एक प्रतिरक्षा प्रणाली होती है जो हमारे शरीर को रोगों से बचाती है । यह कैसे काम करती है ? मान लीजिये कि हमें कहीं घाव हो गया या कोई संक्रमण हो गया तो हमारे खून में मौजूद श्वेत रक्त कणिकाएँ ( WBC ) प्रभावित स्थान के इर्द-गिर्द जमा होकर बाह्य रोगकारकों से संघर्ष करती हैं । रोगाणुओं और श्वेत रक्त कणिकाओं की इस जंग में जो श्वेत रक्त कणिकाएँ मृत हो जाती हैं, वो मवाद बन जाती हैं; जिन्हें विभिन्न विधियों द्वारा शरीर से बाहर निकालना जरूरी हो जाता है वरना ये मृत कणिकाएँ, रोगाणुओं के लिए भोजन का काम करेंगी जिससे संक्रमण को और बढ़ने का मौका मिलेगा ।
अवसाद (Depression) भी तो एक मानसिक घाव या संक्रमण के समान ही है । जब हमें कोई महत्वपूर्ण मानसिक क्षति होती है मसलन किसी संबंध का टूट जाना या किसी महत्वपूर्ण लक्ष्य / इच्छा का पूरा ना हो पाना तो भावदशा में परिवर्तन के कारण हम अवसाद से घिर जाते हैं । ऊपर वाले मामले में जो काम श्वेत रक्त कणिकाएँ करती हैं, इस मामले में वही काम हमारे सकारात्मक संवेग ( विचारशीलता, सृजनशीलता, जुझारूपन आदि ) करते हैं; लेकिन अगर अवसाद प्रबल है तो यहाँ भी वही खेल होता है कि यह नकारात्मक संवेगों ( चिंता, कुंठा, विचारशून्यता आदि ) में परिवर्तित हो जाते हैं जो अवसाद की कंटीली बेल के लिये खाद-पानी का काम करते हैं ।
और जब मामला इतना मिलता-जुलता है तो हमें यहाँ भी वही विधि अपनानी होगी । इस अवसाद को नश्तर लगाना पड़ेगा जिससे इसका मवाद बाहर निकल जाए, अवसादरूपी घाव सूख जाए और नश्तर कैसा ? नश्तर है प्रार्थना का, आत्ममंथन का, अपनी क्षमता को पहचानने का , 'महावीर स्वामी' कहते हैं :
" तू आत्मा के साथ ही युद्ध कर। बाहरी शत्रुओं के साथ किसलिए लड़ता है? आत्मा द्वारा ही आत्मा को जीतने से सच्चा सुख मिलता है। " - यकीन मानिये संक्रमण समाप्त हो जायेगा ।
फूल फिर खिलेंगे, तितलियाँ फिर गायेंगी
थोड़ा सा धीर धरो, बहारें फिर से आयेंगी !
कृपया मेरे प्रणाम स्वीकार करें !
चित्र साभार : गूगल छवियाँ
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