( एक कविता और चंद अशआर )
सेवंती
जरुर तुमने वहाँ मुस्कान बोई होगी
जो यह सेवंती इस बार
बेहिसाब फूली है
पात-पात कली झूली है
और जब तुम हँसी होगी
तो नाजुक कलियाँ खिलने से
खुद को ना रोक पायी होंगी
***
कुछ फुटकर अशआर
( 1 )
जड़ें गहरी पैवस्त हैं जमीन में
तलाश अपने आसमान की है
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( 2 )
महकते हैं ताउम्र रहें जो किस्से अधूरे
मुरझा गये वो जो किस्से हो गये पूरे
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( 3 )
तू भी गड्डी की तरह नखरे खूब दिखाती है
निन्यानवे तो कभी एक सौ एक हो जाती है
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( 4 )
जिन्दगी कुछ यूँ किसी के हवाले की है
हमने अपने ही कातिल की जमानत ली है
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मेरी प्रस्तुति को सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार , राजेन्द्र कुमार जी ! अवश्य ही आपके आदेश का पालन होगा !!
जवाब देंहटाएंमहकते हैं ताउम्र रहें जो किस्से अधूरे
जवाब देंहटाएंमुरझा गये वो जो किस्से हो गये पूरे
बहुत खूब...
बेहद शुक्रिया ! अनीता जी !!
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी रचना बहुत कुछ सिखा जाती है..
संजय भास्कर
http://sanjaybhaskar.blogspot.com