expr:class='"loading" + data:blog.mobileClass'>

गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

सेवंती

( एक कविता और चंद अशआर )



सेवंती

जरुर तुमने वहाँ मुस्कान बोई होगी 
जो यह सेवंती इस बार 
बेहिसाब फूली है
पात-पात कली झूली है
और जब तुम हँसी होगी 
तो नाजुक कलियाँ खिलने से 
खुद को ना रोक पायी होंगी  

***

कुछ फुटकर अशआर 

( 1 ) 


जड़ें गहरी पैवस्त हैं जमीन में
तलाश अपने आसमान की है

***

( 2 )


महकते हैं ताउम्र रहें जो किस्से अधूरे 
मुरझा गये वो जो किस्से हो गये पूरे

***

( 3 )


तू भी गड्डी की तरह नखरे खूब दिखाती है 
निन्यानवे तो कभी एक सौ एक हो जाती है

***

( 4 )


जिन्दगी कुछ यूँ किसी के हवाले की है 
हमने अपने ही कातिल की जमानत ली है

***

 © ‪‎अमित कुमार नेमा‬


4 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी प्रस्तुति को सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार , राजेन्द्र कुमार जी ! अवश्य ही आपके आदेश का पालन होगा !!

    जवाब देंहटाएं
  2. महकते हैं ताउम्र रहें जो किस्से अधूरे
    मुरझा गये वो जो किस्से हो गये पूरे

    बहुत खूब...

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रभावशाली प्रस्तुति
    आपकी रचना बहुत कुछ सिखा जाती है..


    संजय भास्कर

    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं