इस दिसम्बर ज्यादा कुछ लिख नहीं पाया, जो थोड़ा-बहुत लिखा उसको यहाँ पर प्रकाशित कर नहीं पाया । आज 2014 ई. का आख़िरी दिन है तो बस दो हाइकु आपकी सेवा में प्रस्तुत करता हूँ :
* इसी दिसम्बर पेशावर में जघन्य हत्याकांड हुआ , दहशतगर्दी ने बचपन को तहस-नहस कर डाला यह पहला हाइकु उस पीड़ा के घावों को सहलाता हुआ :-
" मासूम मर
दहशत जबर
है पेशावर "
* जाते हुए साल की विदाई और आने वाले साल की शुभकामनायें स्वीकार करें :-
" बदले अंक
यथावत सशंक
उखाड़ो डंक "
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें