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बुधवार, 31 दिसंबर 2014

बस दो हाइकु


इस दिसम्बर ज्यादा कुछ लिख नहीं पाया, जो थोड़ा-बहुत लिखा उसको यहाँ पर प्रकाशित कर नहीं पाया ।  आज 2014 ई. का आख़िरी दिन है तो बस दो हाइकु  आपकी सेवा में प्रस्तुत करता हूँ :





* इसी दिसम्बर पेशावर में जघन्य हत्याकांड हुआ , दहशतगर्दी ने बचपन को तहस-नहस कर डाला यह पहला हाइकु उस पीड़ा के घावों को सहलाता हुआ  :-

" मासूम मर
दहशत जबर
है पेशावर  " 

* जाते हुए साल की विदाई और आने वाले साल की शुभकामनायें स्वीकार करें  :- 


" बदले अंक 
यथावत सशंक 
उखाड़ो डंक  " 



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