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बुधवार, 2 मार्च 2016

जीवन परीक्षा



ह बात लगभग 6-7 वर्ष पूर्व की है. हमारा स्वैच्छिक संगठन मध्यप्रदेश शासन द्वारा ऑनलाइन प्रदत्त की जाने वाली सेवाओं को जनता तक पहुँचाने का सुविधा केंद्र चलाता है. ऐसे में एक ग्रामीण आदिवासी छात्रा ने हमारे यहाँ से कक्षा 12 में स्वाध्यायी छात्र के रूप में परीक्षा में सम्मिलित होने का आवेदन किया.

आवेदन करने के करीब 3 माह बाद ( जबकि परीक्षायें शुरू होने वाली थी ) यह छात्रा हमारे सुविधा केंद्र पर आई और उसने बताया कि आज उसकी प्रायोगिक परीक्षा है लेकिन उसका प्रवेश पत्र ना होने के कारण उसे परीक्षा में शामिल नहीं होने दिया जा रहा है. यह बात जब मुझे बताई गई तब मैंने सभी आवश्यक कागजों के साथ संकुल केन्द्राध्यक्ष को पत्र लिखकर उक्त छात्रा को परीक्षा में उपस्थित होने देने का निवेदन किया लेकिन केन्द्राध्यक्ष ने ना तो रोलकॉल होने और ना ही प्रवेशपत्र होने से ऐसा करने में अपनी असमर्थता जताई.


इस भागदौड़ में शाम हो गई और वह बालिका प्रायोगिक परीक्षा में शामिल नहीं हो सकी, शाम को जब वह मुझसे मिलने पहुँची तो संयोगवश मेरी जगह उसकी भेंट हमारी माँ से हो गई और उसने यह सारा घटनाक्रम माँ को सुनाया ( स्वाभाविक है कि बताते हुए वह रोने लगी ), माँ ने यह सब सुनकर उसे सांत्वना दी, खाना खिलाया और कहा कि धीरज रखो कोई ना कोई रास्ता जरुर निकलेगा.



रात में जब माँ ने मुझे यह बताया तो मैंने अगले दिन के पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम स्थगित करके इस बारे में कुछ करने की ठानी. अगले दिन कार्यालयीन समय शुरू होते ही मैंने माध्यमिक शिक्षा मंडल (म.प्र.) भोपाल को फोन लगाना शुरू किया और सचिव महोदया से बात करवाने की अपील की. कई बार फोन लगाने के बाद दोपहर बाद 3-4 बजे के लगभग मेरी उनसे बात हो सकी और मैंने उन्हें इस की जानकारी दी. उन्होंने सकारात्मक रूख अपनाते हुए मुझे आश्वासन दिया कि "आज रात तक सारे प्रवेशपत्र मंडल की वेबसाइट पर अपलोड कर दिए जायेंगे और डाउनलोड किये हुए प्रवेशपत्र की मान्यता भी मूल के बराबर ही रहेगी " तब मैंने उनसे कहा कि " लेकिन जो छात्र/छात्रा इनके अभाव में प्रायोगिक परीक्षाओं से वंचित हो गये हैं, उन्हें तो संबंधित विषय में पूरक (supplementary) आ जायेगी" इस बात पर गौर करते हुए उन्होंने पुन: निर्णय लेते हुए कहा कि " प्रवेशपत्र ना होने के कारण जिनके साथ ऐसा हुआ है, बिना पूरक दिए हुए उनकी प्रायोगिक परीक्षायें दोबारा आयोजित करवा दी जायेंगी" यह सुनकर मुझे असीम संतोष हुआ.

इसके बाद मैंने उक्त छात्रा का प्रवेशपत्र डाउनलोड करवा कर अपने एक सहायक के हाथों उसके दूरस्थ घर तक पहुँचाया और उसे यह जानकारी दी कि वह यह सोचकर मन छोटा ना करे कि वो प्रैक्टिकल परीक्षा में फेल हो जायेगी, अपने पहले पेपर के दिन वह आकर माँ और मुझसे मिली भी. दो या तीन दिन बाद मुझे मंडल से फोन आया और जिससे पता चला कि यह समस्या सारे प्रांत में बहुत सी जगहों पर थी और मेरे द्वारा समय रहते सूचना देने के कारण हल हो गई.

हर साल जब भी बोर्ड परीक्षायें शुरू होती हैं तो यह वाक्या बरबस याद आ जाता है.


छवि साभार : दैनिक ट्रिब्यून  



4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बच्चों का नैसर्गिक विकास होने दें - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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    1. मेरी पोस्ट को आज की बुलेटिन बच्चों का नैसर्गिक विकास होने दें - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने हेतु हार्दिक धन्यवाद !!

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  2. बड़ी कश्मकश रहती है परीक्षाओं के दौर में ....बहुत सी याद ताज़ी हो उठती हैं परीक्षाओं का माहौल देखकर ...
    आजकल बच्चों की परीक्षाओं का समय है...

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