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शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

वांछित-अवांछित

पिछले कुछ सालों से हमारे क्षेत्र की खरीफ की मुख्य फसल "सोयाबीन" लगातार किसी ना किसी आपदा से ग्रसित होती आ रही है। इस बार फसल अच्छी है तो येलो मोज़ेक वायरस का प्रकोप शुरू हो गया। एकबार पौधे के इससे ग्रसित हो जाने पर इसका कोई सटीक उपचार नहीं है।  आप बस इसे फ़ैलाने वाले कीटों पर ही नियन्त्रण कर सकते हैं। रोगग्रसित पौधे पुन: स्वस्थ नहीं होते। इसी के चलते हमने खेतों का व्यापक निरीक्षण किया और इससे मिलता-जुलता सबक जिंदगी के लिए भी सीखा। वही यहाँ दोहराना चाहता हूँ।

 " उपजहिं एक संग जग माहीं। जलज जोंक जिमि गुन बिलगाहीं।।
 सुधा सुरा सम साधु असाधू। जनक एक जग जलधि अगाधू।।
(रामचरितमानस बाल. 4.3)

खेतों में कितनी लगन-मेहनत के साथ फसल लगाई जाती है। समय-समय पर उसकी देखभाल की जाती है। उसमें खाद-उर्वरक, दवाईयाँ डाली जाती हैं। यही सब हम भी अपने जीवन के साथ करते हैं। जीवन की बढ़िया साज-सम्हाल, सुख-सुविधाओं के लिए प्रयत्न करते हैं। जैसे अच्छा फसलोत्पादन वैसे ही एक उत्तम जीवन भी हमारे लिए वांछित होता है। इतनी एहतियात बरतने के बाद भी दोनों के सामने पचास तरह की आफतें आती हैं।  


येलो मोजेक वायरस से ग्रस्त सोयाबीन की पत्तियाँ 


वहीं दूसरी तरफ नींदा (खरपतवार) होते हैं। यह पूर्णत: अवांछनीय हैं; फिर भी बिना किसी देखभाल के सदा लहराते रहते हैं। ना तो इनको कोई कीट-व्याधि होती है और ना इनमें कोई रोग लगता है। हमारे संसार-समाज में भी ऐसी बहुत सी अनचाही चीजें हैं। फिर वो चाहे बुरे लोग हों, व्यसन हों, कुरीतियाँ हों, या अपराध हों; यह दोनों ही दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ते हैं।    

" पर अकाजु लगि तनु परिहरहीं। जिमि हिम उपल कृषी दलि गरहीं।।
बंदऊँ खल जस सेष सरोषा। सहस बदन बरनइ पर दोषा।।"
(रामचरितमानस बाल.  3ख.4)


आपके हृदय में विराजमान सीतारामजी को, हमारे सीतारामजी की, जयसीतारामजी की पहुँचे। 

  

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