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गुरुवार, 20 नवंबर 2014

समझो मुझ पनिहारिन की पीर

( कविता ) 


‘‘लिखो क्योंकि तुम अपने आपको किसी विचार या मत से मुक्त करने की आवश्यकता महसूस करते हो।’’
             ( टी. एस. ईलियट )

तो थोड़ा-बहुत हम भी लिख लेते हैं, लिखके यहाँ या अपने ब्लॉग पर छाप भी देते हैं, फिर भी पत्र-पत्रिकाओं में छपने की बात ही कुछ और होती है। अब जैसे इस कविता को ही देख लीजिये जो मई या जून 2008 में भोपाल से प्रकाशित साप्ताहिक 'कृषक जगत' की 'चित्र देखो कविता लिखो' प्रतियोगिता में पुरुस्कृत हुई थी। अब चित्र तो हमारे पास है नहीं आप कविता पढ़ के ही चित्र का अनुमान लगा लीजिये !

खोजबीन में कुछ और भी हाथ लगा है, लेकिन वो फिर कभी.........






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