भारत दर्शन : प्राक्कथन
|| झाँकी हिंदुस्तान की :- इस श्रंखला की पहली पाती ||
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तुम्हारे आभार की लिपि में प्रकाशित
हर डगर के प्रश्न हैं मेरे लिए पठनीय
कौन-सा पथ कठिन है...?
मुझको बताओ
मैं चलूँगा।
"यात्रा" यह शब्द ही अपने आप में जीवन का पूरा व्याकरण है । जन्म से लेकर मृत्यु भी एक सफर है और इस एक सफर में ना जाने कितने सफर हम तय करते हैं । "यात्रा" नाम ही रोमाँच से भर देता है । कुछ मनचाहे और कुछ अनचाहे, कुछ सुखांत और कुछ दुखांत तज़ुर्बे , अनोखी अनुभूतियाँ , किसी स्थान का अपने दृष्टिकोण से अन्वेषण , आँखों से होकर गुजरता एक एक नज़ारा अपने आप में किताब जैसा होता है । सहयात्री और रास्तों में मिलने वाले लोग आपको कई बार किसी मुद्दे को एक बिलकुल नये आयाम से सोचने पर विवश कर देते हैं । यात्रा के दौरान रोज़ाना के मामलात से ही निकल के एक बिलकुल नई शै आपके सामने आ जाती है , और आप विस्मृत से हो जाते हैं । इसके अनुभव सुनाने को , बताने को , लिखने को मन आकुल हो उठता है । और कुछ जगहों पर तो आप फिर से भी जाना चाहते हैं , बार-बार जाना चाहते हैं ।
वर्ष 2009 के अक्टूबर के दूसरे हफ्ते के दौरान रेल पर्यटन की इस वेबसाइट पर निगाह पड़ी, और भारत दर्शन पर्यटक रेलगाड़ी का एक यात्रा कार्यक्रम मन को भा गया । घर-परिवार और मित्रों में चर्चा की , लेकिन कुछ ने यात्रा की अवधि जो लगभग 2 सप्ताह थी , तो कुछ ने अन्यान्य कारणों से साथ चलने में असमर्थता प्रकट की । फिर भी हम 4 जने चलने को तैयार हो गये लेकिन उनमें से भी दो बाद में चलने से इंकार करने लगे तो बचे दो, एक तो मैं और दूसरा मेरा छोटा भाई अंकित, हम दोनों ने अपने टिकिट आरक्षित करवा लिये जिनका शुल्क रु. 7200. 00 / प्रतिव्यक्ति ( भोजन व दर्शनीय स्थानों के भ्रमण सहित ) के लगभग था । यात्रा के लिये एक मात्र प्रावधान था द्वितीय श्रेणी शयनयान का, यात्रा शुरू होने में अभी लगभग 20 दिन शेष थे और कुछ कारणवश हम लोगों को भी अपनी यात्रा रद्द होती प्रतीत होने लगी लेकिन धीरे-धीरे सब व्यवस्थित हो गया और हमारा जाना सुनिश्चित हो गया ।
ठंड की शुरुआत हो चुकी थी तो हमने ( मैं और अंकित ), सामान्य कपड़ो के साथ-साथ गर्म कपड़े भी रख लिये , और हाँ , ये भी कहा गया था कि ट्रेन में आपको बिछौना उपलब्ध नहीं करवाया जायेगा तो हमने दो चादरें, दो हल्के कम्बल और दो हवा से फुलाये जाने वाले तकिये भी रख लिये, बहुत मना करने पर भी माँ ने सूखा, सफरी नाश्ता भी रख दिया जो तादाद में इतना था कि एक थैला उसी से भर गया । पिताजी भी चिकित्सक और मैं भी तो पिताजी ने एक अच्छा-खासा फर्स्ट-एड बॉक्स भी तैयार कर दिया जो इस यात्रा में कहाँ-कहाँ व कैसे-कैसे काम आया ये आपको आगे मालूम होता जायेगा । थोड़े में कहें तो यात्रा की सभी जरूरी तैयारियां पूरी कर लीं । और सबकी सारी बहुत-बहुत जरूरी हिदायतों को सुनकर और उनके पालन का आश्वासन देकर हमने अपने सफर की शुरुआत की ।
रात की एक बस से हम भोपाल के लिए रवाना हुये, इस बस ने हमें रात के लगभग 2 बजे भोपाल पहुंचाया , मैं भोपाल में ही पढ़ा हूँ इसलिये भोपाल मेरा जाना-माना शहर है । इतनी देर रात किसी मित्र या रिश्तेदार को परेशान करना मुझे ठीक नहीं लगा , हमारी ट्रेन रवाना होने का समय भी हमें प्रात: 8 बजे का बताया गया था तो हम नादरा ( पुराना ) बस स्टैंड से ऑटो करके हबीबगंज रेलवे स्टेशन आ गये , और यहीं पर रेल विश्रामगृह की डोरमेट्री में रात्रि विश्राम किया ।
तब तक के लिये अनुमति दीजिये , कृपया मेरे प्रणाम स्वीकार करें ............
बहुत सुन्दर और सधी शुरुआत जिससे ऐसा लग रहा है मानो ये यात्रा आपने तय ना की हो वरन हम तय करने वाले है। आखिर हम भी तो मुसाफिर ही है जो जीवन रूपी सफ़र में आपसे मिले है।तो एक उम्मीद तो बनती ही है की न सिर्फ़ इस यात्रा वृतांत वरण वास्तविक जीवन में भी आपसे कुछ सीखने का मौका मिले।
जवाब देंहटाएंएक बार फिर से धन्यवाद इस सफ़र की शुरुआत करने के लिए जो की जहाँ रोचक होने की उम्मीद है तो हमारे ज्ञानवर्धन में सहायक होने की भी। हम बस दिल थाम के प्रतीक्षा कर रहे है अगले प्रकाशन की।
धन्यवाद
मेरे निजस्वरूप प्रिय बन्धु स्वप्निल जी , लेख की रचना आपको अच्छी लगी मेरा हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें " हम भी तो मुसाफिर ही है जो जीवन रूपी सफ़र में आपसे मिले है " आपकी इस बात से सौ फीसदी सहमत हूँ | यह जीवन एक सतत यात्रा है और सीखने-सिखाने की प्रक्रिया भी लगातार ही चलती रहती है | हर सफर कुछ न कुछ सीख अवश्य दे जाता है | बस जुड़े रहें अगली किश्तें जल्द ही प्रकाशित करूंगा |
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद , नीरज जी
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति।। :-)
जवाब देंहटाएंनई कड़ियाँ : कवि प्रदीप - जिनके गीतों ने राष्ट्र को जगाया
गौरैया के नाम
धन्यवाद !! हर्षवर्धन जी , मैंने कवि प्रदीप पर केन्द्रित आपकी पाती को फेसबुक पर साझा किया है | साधुवाद
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