मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा
सर्वप्रथम तो आप के द्वारा मेरा जो उत्साहवर्धन हुआ उसके लिये मेरे हार्दिक धन्यवाद स्वीकार करें |
दूरदर्शन पर सामाजिक-मनोरंजक कार्यक्रमों का प्रसारण होने से यह परिवार के प्रत्येक आयु-वर्ग के सदस्यों का मनपसंद बन गया | एक और महत्वपूर्ण बात यह हुई कि इस तरह के प्रोग्रामों का प्रसारण होने से विभिन्न विधाओं के महारथी भी दूरदर्शन की ओर आकर्षित हुये | हमने अपनी पिछली पाती में "हमलोग" और "बुनियाद" की चर्चा की है | "हमलोग" और "बुनियाद " श्रंखला को हिंदी के प्रसिद्ध लेखक, पत्रकार "श्री मनोहर श्याम जोशी " ने लिखा था, इनको "भारतीय सोप ऑपेरा का पिता " भी कहा जाता है , जबकि इन दोनों को क्रमश: " पी. विजयकुमार " और शोले जैसी अमर फिल्म के निर्देशक "रमेश सिप्पी" ने निर्देशित किया था |
धीरे धीरे दूरदर्शन की प्रसारण अवधि बढती गई , और यह न सिर्फ शाम को बल्कि सुबह, दोपहर और शाम को भी घरों में पहुँचने लगा | प्रसारण प्रारम्भ होने के पूर्व एक हस्ताक्षर धुन बजाई जाती थी | प्रत्येक प्रसारण सभा के प्रसारण के पूर्व दो वलयाकार रेखायें घूमते हुये दूरदर्शन का प्रतीक बनाती थी और पार्श्व में एक धुन बजती थी | इस धुन को मुख्य रूप से मशहूर शहनाई वादक "उस्ताद अली अहमद हुसैन खान " साहब और प्रसिद्ध सितार वादक "पंडित रविशंकर" ने तैयार किया था | इसके पश्चात हमारे राष्ट्रीय गीत वन्देमातरम का गायन होता , लीजिए आगे बढ़ने के पहले एक बार सुन और देख लिया जाये :
यूँ तो हर दिन ही दूरदर्शन का प्रसारण देखना दिनचर्या का हिस्सा बनाता जा रहा था , लेकिन रविवार की तो बात ही अलग थी , इतवार तो जैसे दूरदर्शन के नाम लिख दिया गया था , फिर चाहे वो सुबह सुबह बागवानी का प्रोग्राम "अंकुर" हो या फ़िल्मी गीतों की "रँगोली" | मर्यादा पुरुषोत्तम राम के बिना भारत के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती डॉ. अल्लामा इकबाल ने कहा है :
है राम के वजूद पे हिंदोस्तां को नाज़,
अहले-नजर समझते हैं उसको इमामे-हिन्द।
और फिर सन 1987 ई. में गणतन्त्र दिवस के एक दिन पूर्व यानि 25 जनवरी को यह हकीकत एक बार फिर साबित हो गई जब दूरदर्शन पर " श्री रामानंद सागर " द्वारा रामायण पर इसी नाम से बनाई गई श्रंखला का प्रसारण प्रारम्भ हुआ ,और दूरदर्शन भी राममय हो गया | टी.व्ही. सेट भी पूजन सामग्री बन गया, लोग जैसे मंदिर में देव-विग्रह के सामने हाथ जोड़ते हैं वैसे ही टी.व्ही सेट के सामने करबद्ध होने लगे | दूरदर्शन मानो दिव्यता को प्राप्त हो गया , इस कालजयी कृति में श्रीराम की भूमिका निभाने वाले "अरुण गोविल " और जानकी की भूमिका निभाने वाली दीपिका में लोगों को सीता-राम का साक्षात्कार होने लगा , हनुमान जी बने हुये दारा सिंह जन-सामान्य में हनुमान के ही स्वरूप बन गये | मुझे याद आता है कि प्रातः 09:30 पर सड़कों पर कर्फ्यू सा लग जाता था और घर की बैठक खचाखच भर जाती थी, एक एक संवाद को ईश्वरीय वाक्य समझ कर सुना जाता था | जब यह सीरीज प्रसारित हो चुकी उसके बाद इसकी वीडियो कैसेट आ गयी , बाद में वीडियो सी.डी. जिसे व्ही.सी.आर/व्ही.सी.पी. आदि पर बहुत दिनों तक इसे सार्वजनिक गणेशोत्सव - दुर्गोत्सव पर दिखाया जाता था और लोग बड़े चाव से इसे देखते थे |
राम के बाद दूरदर्शन पर कृष्ण अवतरित हुये बी.आर.चोपड़ा की "महाभारत" श्रंखला से और एक बार फिर टी.व्ही. को दिव्यता प्राप्त हुई | कहा जाता है कि एक जमाने में लोगों ने बाबू देवकीनंदन खत्री की चन्द्रकान्ता पढ़ने के लिये हिंदी सीखी थी अगर ये कहा जाये कि उपरोक्त दो टी.व्ही.सीरीज देखने के लिये बहुत लोगों ने टी.व्ही. सेट खरीदे तो कोई अतिशयोक्ति ना होगी | फिर रविवार की दोपहर क्षेत्रीय भाषा की फिल्म और शाम को एक हिंदी फीचर फिल्म |
रविवार के प्रोग्रामों के इतर भी बहुत से कार्यक्रम पसंद किये जाते थे , यहाँ पर मैं नाम लेना चाहूँगा हिंदी-व्यंग के सशक्त हस्ताक्षर "श्री शरद जोशी" का ये दूरदर्शन से जुड़े और एक के बाद एक कई अच्छी रचनायें दूरदर्शन के लिये लिखीं जिनमे से कुछ प्रमुख हैं :- श्याम तेरे कितने नाम, ये जो है जिंदगी , दाने अनार के , ये दुनिया गजब की, गुलदस्ता आदि, इनमें से एक "ये दुनिया गजब की" में हास्य रस के कवि और अभिनेता शैल चतुर्वेदी ने भी अभिनय किया था | सप्ताह में दो बार आने वाला फ़िल्मी गानों का कार्यक्रम "चित्रहार" भी अच्छा खासा लोकप्रिय था , और "सुरभि" में पूछे जाने वाले सवाल के उत्तर में तो लाखों पोस्टकार्ड पहुँचते थे , यहाँ तक कि भारतीय डाक विभाग ने प्रतियोगिता पोस्टकार्ड तक जारी कर दिया |
राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिये 15 अगस्त 1988 को लाल किले से प्रधानमंत्री के भाषण के बाद पहले पहल प्रसारित मिले सुर मेरा तुम्हारा भी जल्दी ही हर खासो-आम की जुबाँ पर चढ़ गया | अपनी तरह के अनूठे इस गीत में 14 भारतीय भाषायें हैं और इसे मिलकर गाया है अपने अपने क्षेत्र की नामचीन 41 हस्तियों ने, इसे लिखा है "पीयूष पाण्डेय " ने , यह इतना अनोखा है कि 22 वर्ष बाद इसका एक और संस्करण "फिर मिले सुर मेरा तुम्हारा " बनाया गया | आइये हम पुराना वाला गीत एक बार सुनकर ताज़ादम हो लें :
1992 में भारतीय परिदृश्य पर दूरदर्शन के अतिरिक्त अन्य उपग्रह चैनल भी आ गये | दूरदर्शन ने भी 16 दिसम्बर 2004 से नि:शुल्क डीटीएच सेवा डीडी डाइरेक्ट + की शुरूआत की और आज दूरदर्शन के लगभग 30 चैनल है जिनमें शामिल हैं :
- राष्ट्रीय चैनल (5): डीडी 1, डीडी न्यूज़, डीडी भारती, डीडी स्पोर्ट्स और डीडी उर्दू
- क्षेत्रीय भाषाओं के उपग्रह चैनल (11): डीडी उत्तर पूर्व, डीडी बंगाली, डीडी गुजराती, डीडी कन्नड़, डीडी कश्मीर, डीडी मलयालम, डीडी सहयाद्रि, डीडी उडिया, डीडी पंजाबी, डीडी पोधीगई और डीडी सप्तगिरी
- क्षेत्रीय राज्य नेटवर्क (11): बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मिजोरम और त्रिपुरा
- अंतरराष्ट्रीय चैनल (1): डीडी इंडिया
- संसदीय चैनल (2) : लोकसभा टी.व्ही. और राज्यसभा टी.व्ही.
दूरदर्शन के राष्ट्रीय नेटवर्क में 64 दूरदर्शन केन्द्र / निर्माण केन्द्र, 24 क्षेत्रीय समाचार एकक, 126 दूरदर्शन रखरखाव केन्द्र, 202 उच्च शक्ति ट्रांसमीटर, 828 लो पावर ट्रांसमीटर, 351 अल्पशक्ति ट्रांसमीटर, 18 ट्रांसपोंडर, 30 चैनल तथा डीटीएच सेवा आती है। विभिन्न सवर्गों में 21708 अधिकारियों तथा कर्मचारियों के पद स्वीकृत हैं। किन्तु इसमें आधे के करीब रिक्त हैं, क्योंकि इसे आवंटित होने वाला बजट पर्याप्त नहीं है | जिसका सीधा असर दूरदर्शन की गुणवत्ता की कमी में देखा जा सकता है | किन्तु यह सब होने के बावजूद आज भी दूरदर्शन अपनी सरकारी भोंपू के ठप्पे से मुक्त नहीं हो पाया | आज भी दूरदर्शन समूचे भारत का समाचार-विचार और सांस्कृतिक संबंधो के कार्यक्रमों का एक मात्र प्रसारक है | अपनी जड़ों की तरफ लौटने, जड़ों से जोड़ने, उस पर संवाद करने की , और सही मायने में जनमाध्यम बनने की ताकत आज भी दूरदर्शन में ही है। आज जहाँ दूरदर्शन के प्रसारणों को विश्व के 146 देशों में देखा जा सकता है , वहाँ आवश्यकता है कि दूरदर्शन, बी.बी.सी. जैसा कोई तरीका अपना कर अपने स्वतंत्र अस्तित्व की घोषणा करे | जनता की नब्ज को पहचाने और अरचनात्मक रुढिवादी नौकरशाही शिकंजे से मुक्त होकर सच्चे अर्थों में जनता का संचार माध्यम बने , भारतीय प्रजा की आवाज़ बने | आशा है परिवर्तनों के दौर में दूरदर्शन भी नये कलेवर में जलवाअफरोज़ होगा |
चलते चलते आपको दो बातें बता दें कि लोकप्रिय सिने-सितारे शाहरुख खान ने अपनी अभिनय यात्रा छोटे पर्दे यानि दूरदर्शन से ही धारावाहिक "सर्कस" और "फौजी" से शुरू की थी | दूरदर्शन पर "सरब सांझी गुरबानी " पहला प्रायोजित कार्यक्रम था जिसे प्रायोजित किया था " टेक्सला टी.व्ही." ने |
बढ़िया जानकारी सांझा की आपने ... आभार |
जवाब देंहटाएंशिवम जी , बहुत बहुत धन्यवाद , अनुरोध है कि अन्य आलेख भी पढ़ें और अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया से मुझे अवगत कराएँ |
हटाएं:-)
जवाब देंहटाएं