रामायण, महाभारत, हमलोग और बुनियाद
नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाओं के साथ आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप मुझे भूले ना होंगे, हम अपनी पिछली पाती मे लिखते आये हैं कि 1976 तक हमारे देश में टी.व्ही. प्रसारण सेवा "आकाशवाणी" का ही एक अंग था | जी हाँ ये बिलकुल सच है , वैसे तो टी.व्ही. प्रसारण सेवा का आरम्भ इससे बहुत पहले ही हो चुका था, लेकिन कैसे हुआ ये जानना भी कोई कम रोचक नहीं तो आइये चलते हैं पिछली शताब्दी मे और जानते हैं कि यह आगाज़ कैसे हुआ :
यह साल था 1959 ई. जब फिलिप्स ( इण्डिया ) ने हमारे देश की एक प्रदर्शनी मे , अपने एक टेलीविजन
( आगे जिसे हम टी.व्ही. कहेंगे ) ट्रांसमीटर का प्रदर्शन किया और भारत सरकार के सामने इसे कम कीमत पर उपलब्ध करवाने के प्रस्ताव रखा | सरकार ने " कार्मिकों को प्रशिक्षित करने, और आंशिक रूप से यह जानने के लिये कि सामुदायिक विकास और औपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में टी.व्ही. क्या हासिल कर सकता है ? " इन उद्देश्यों को लेकर इसे शुरू करने का निर्णय लिया | यूनेस्को द्वारा सामुदायिक रिसिव्हर हेतु दिये गये 20,000 अमरीकी डॉलर के अनुदान और अमरीका द्वारा उपलब्ध करवाये गये कुछ उपकरणों से प्रायोगिक तौर पर 15 सितम्बर 1959 को नई दिल्ली के विज्ञानं भवन से तत्कालीन राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद जी ने इसका औपचारिक उद्घाटन किया | उस समय दिल्ली के आस-पास की 40 किलोमीटर की परास मे, सप्ताह मे तीन दिन आधा या एक घंटे के लिये इसके कार्यक्रमों का प्रसारण देखा जा सकता था | अब यहाँ ये प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि :
इसको देखता कौन था ?
इन कार्यक्रमों को देखने के लिये दिल्ली के अड़ोस-पडोस के गाँवों में लगभग 180 टेली-क्लब की बनाये गये जहाँ ये कार्यक्रम सामूहिक रूप से देखे जा सकते थे | लगभग 2 साल बाद 1961 ई. में हुये एक सर्वेक्षण से यह बात सामने आई की इसका समाज पर प्रभाव हुआ है | नियमित रूप से दैनिक प्रसारण 1965 ई. में प्रारंभ हुआ, और इसी समय इसके कार्यक्रमों में मनोरंजक और सूचनात्मक प्रोग्राम शामिल किये गये, लेकिन अवधि वही थी एक घंटा, साल 1967 ई. के गणतन्त्र दिवस से इसमें 20 मिनिट का एक साप्ताहिक कार्यक्रम “कृषिदर्शन” जोड़ा गया | प्रसारण अवधि मई 1969 ई. में दो घंटे और जुलाई 1970 ई. में बढकर 3 घंटे हो गई, इसी साल के दिसम्बर में साढ़े तीन घंटे हो गई | 1972 ई. में टी.व्ही. प्रसारण “ आमची मुंबई ” तक जा पहुँचा , अपनी शुरुआत से लेकर लगभग 13 वर्षों में टी.व्ही. प्रसारण सेवा हमारे देश के दो महानगरों तक ही सीमित था, इसी साल के अंतिम हिस्से में यह अमृतसर तक अपनी दस्तक दे रहा था | 1973 ई. के 14 नवम्बर को प्रसारण अवधि को चार घंटे कर दिया गया शाम के 6 से रात्रि 10 बजे तक, 1975 ई. में टी.व्ही. प्रसारण सेवा की पहुँच देश के सात शहरों तक हो गई | अभी तक यह टी.व्ही. प्रसारण सेवा “आकाशवाणी” के टेलीविजन विंग के रूप में ही कार्यरत था किन्तु 01 अप्रैल 1976 ई. को इसे आकाशवाणी से पृथक करके इस नई संस्था को “दूरदर्शन” नाम दिया गया | नवम्बर 1981 से प्रसारण अवधि साढ़े चार घंटे हो गई ,1982 ई. के एशियाई खेलों से दूरदर्शन पर “राष्ट्रीय कार्यक्रम” का प्रसारण शुरू हुआ, अभी तक हमारा दूरदर्शन श्वेत-श्याम ( Black & White ) ही था जो अब रंगीन नज़ारों से भर गया, वर्ष 1984 में दूरदर्शन ने राष्ट्रव्यापी पहुँच हेतु अपनी महत्वाकांक्षी योजना “ एक ट्रांसमीटर प्रतिदिन (One-Transmitter-a-Day ) प्रारम्भ की |
मध्यप्रदेश के सागर जिला मुख्यालय में भी ट्रांसमीटर स्थापित किया गया जिससे हमारे कस्बे “रहली” में भी दूरदर्शन पहुँच गया, तब मैं चार साल का था और मुझे उस समय की हल्की हल्की स्मृति है | हमारे घर भी टी.व्ही. सेट आया वो टेक्सला कम्पनी का एक श्वेत-श्याम टी.व्ही. सेट था ,जो लकड़ी की बनी हुई केबिनेट में था और लकड़ी का ही शटर भी था जिसको थोड़ा सा रंगीन पुट देने के लिये इसकी स्क्रीन पर नीली पारदर्शी प्लास्टिक का कवर लगाया गया था | हम में से जिनको उस समय की याद होगी वो भलीभाँति जानते होंगे कि उस समय छत पर एक बूस्टर युक्त एंटीना लगाया जाता था जो तेज हवा से अक्सर घूम जाता था और टी.व्ही सेट पर सिग्नल आना बंद हो जाते थे तब छत पर जाकर एंटीना की स्थिति सुधारना पड़ती थी | सिग्नल भी कमजोर होते थे जिनको सुधारने के लिये दो बूस्टर लगाये जाते थे, एक तो एंटीना के साथ और दूसरा टी.व्ही.सेट के साथ और वोल्टेज की उछल-कूद से टी.व्ही.सेट भस्म न हो जाये इसलिये एक वोल्टेज स्टेबलाइजर | और कुछ ऐंसा दिखता था हमारा यह टी.व्ही.सेट :
इसी साल एक बड़ा मकबूल सोप ऑपेरा प्रसारित होना शुरू हुआ " हम लोग " | इसी वर्ष ही तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या हो गई , और उनके अंतिम संस्कार का प्रसारण दूरदर्शन पर किया गया , साथ में उनके अंतिम भाषण का प्रसारण किया जाता था , मुझे याद है कि इसे देखने के लिये मेरे नगर के चौक पर 3-4 टी.व्ही.सेट लगाए गये थे | अगले ही साल हमारे घर में रंगीन टी.व्ही. सेट आ गया जो ऑरसन कंपनी का था, तो अब हम लोग रंगीन हो गये, और साहब यह धारावाहिक दूरदर्शन का एक अहमतरीन कदम साबित हुआ , मैं अपनी बात को इस उद्धरण के माध्यम से कहना चाहूँगा :
मेरे ख्याल से इस उद्धरण के बाद इसके बारे में और कुछ कहने की जरूरत नहीं, इससे अगले साल यानि 1986 ई. से शुरू हुआ " बुनियाद " , कुछ याद आया आपको , मुझे आप पता है आप मुस्कुरा रहे हैं , जी हाँ
" हवेलीराम " अब मैं आपको मुस्कुराहट की एक और वजह देता हूँ , दूरदर्शन 27 साल बाद फिर से इस धारावाहिक का प्रसारण प्रारम्भ कर रहा है | ये देखिये :
तो अगर आपने पहले ना देखा हो तो अब देखना ना भूलियेगा | भारत और पाकिस्तान के विभाजन की कहानी पर बना 'बुनियाद' जिसने विभाजन की त्रासदी को उस दौर की पीढ़ी से परीचित कराया। इस धारावाहिक के सभी किरदार आलोक नाथ ( मास्टर हवेलीराम जी), अनीता कंवर ( लाजो जी), विनोद नागपाल, दिव्या सेठ को और इनके बेहतरीन अभिनय को | इरादा था इस विषय को एक ही चिट्ठे में समेटने का पर अब लिखना शुरू किया तो बहुत सी बातें याद आती जा रही हैं लेकिन फिर यह पाती कुछ बोझिल हो जायेगी इसलिये अपनी लेखनी को यहीं विराम देता हूँ लेकिन आप से वादा है कि अगले पत्र में आपको कुछ और रोचक इतिहास बताऊंगा उस दौर का जब चलता था दूरदर्शन का राज |
चलते चलते आपको दो बातें बता दें कि दूरदर्शन विश्व में पहला प्रसारक था जिसने सामाजिक शिक्षा के लिये उपग्रह का उपयोग किया, इसके लिये दूरदर्शन ने नासा ( NASA ) से ए.टी.एस.६ नामक उपग्रह एक वर्ष के लिये किराये पर लिया था | और दूसरी यह कि यह पाती लिखते हुये मैं विविध भारती पर अभी कुछ दिन पहले हमारे बीच से चले गये अज़ीम अभिनेता फारुख शेख साहब का निम्मी मिश्रा द्वारा लिया हुआ साक्षात्कार " पिटारा- आज के मेहमान " कार्यक्रम में सुन रहा था जिसमें उन्होंने आकाशवाणी और दूरदर्शन का महत्व बाखूबी रेखांकित किया |
तब तक के लिये अनुमति दीजिये , कृपया मेरे प्रणाम स्वीकार करें ............
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