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शुक्रवार, 6 नवंबर 2015

नित्य मिलन-विरह





" भंगुर है वह मिलन 
जिसे तुम  स्थायी मान बैठी हो
इसलिये नहीं कि मेरे प्रेम में 
कोई खोट है पर प्रयास है
तुमसे हर बीते दिन से 
अधिक प्रेम करने का 
इसके लिए जरूरी है कि
यह मिलन अस्थायी हो
मैं तुम्हें नित-नित खोना चाहता हूँ 
मैं तुम्हें नित-नित पाना चाहता हूँ "

© डॉ. अमित कुमार नेमा




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