एक कविता , 'अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस ' पर समर्पित है, हेमराज को श्रद्धांजलि स्वरूप -
" इन उन्नत भवनों में गर तुमने पैसा,
तो मैंने भी अपना पसीना लगाया है,
काली अंधियारी खानों में दम घोंटे हैं,
ठोस पटरियों पर अपना खून बहाया है,
तुम्हारी खातिर मैंने जिस्म में अपने,
सनसनाती इस बिजली को दौड़ाया है |
पेट में दहकती क्षुधा आग की खातिर,
रात औ दिन को सदा एक सा पाया है,
गुम गाय सी पत्नी फिरती मारी मारी,
जिसने बच्चों को भूखे पेट सुलाया है |
वो जिन्हें हम हैं समझते आये मसीहा,
उसने मेरी ही लाश को ईंधन बनाया है,
महँगाई का रोना रोती इस दुनिया में,
खुद की जान को सबसे सस्ता पाया है |
खुशकिस्मत हो मालिक कहलाते हो,
शब्द श्रमिक यह मेरे हिस्से आया है | "
डॉ.अमित कुमार नेमा
01 मई 2014
01 मई 2014
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन 'OPEN' और 'CLOSE' - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद !!
हटाएंखुशकिस्मत हो मालिक कहलाते हो,
हटाएंशब्द श्रमिक यह मेरे हिस्से आया है | " वाह॥
मा. द्वारिका प्रसाद जी, धन्यवाद .. जब 25 अप्रैल को अखबार में इस हादसे के बारे में पढ़ा था मन में तभी से कुछ चुभा हुआ लगता था जो इस कविता के भावों के माध्यम से बाहर निकला |
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