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सोमवार, 5 अक्तूबर 2015

जयप्रकाश



"महापुरुष सिर्फ बड़ा आदमी नहीं होता, एक प्रतीक होता है--किसी महान उद्देश्य का, किसी महान कर्म का। लक्ष-लक्ष मानव मन की आशायें, आकांक्षायें ही एकत्र होकर एक महापुरुष का रूप धारण करती हैं ! ऐसे महान पुरुषों का वंदन-अभिनंदन व्यक्तिपूजा नहीं, आदर्शपूजा है और उसके कार्यों में हाथ बंटाने की चेष्टा पुनीत महायज्ञ। यज्ञाग्नि प्रज्जवलित है, उसमें अपनी समिधा डालो। " - रामवृक्ष बेनीपुरी

पिछले सौ सालों के जिन व्यक्तित्वों से प्रभावित हुआ हूँ , 'लोकनायक जयप्रकाश नारायण' उनमें से एक हैं। इस गांधीवादी आदमी की सम्पूर्ण क्रांति इस भारतवर्ष के सभी पहलुओं को समावेष्टित करती है। लोकनायक ने कहा कि "सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियाँ शामिल है - राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति। इन सातों क्रांतियों को मिलाकर सम्पूर्ण क्रान्ति होती है।"

उनका साफ कहना था कि इंदिरा सरकार को गिरना ही होगा। तब श्रीमती इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 की आधी रात में राष्‍ट्रीय आपातकाल घोषित किया जिसके बाद लोक नायक जय प्रकाश नारायण को गिरफ्तार कर लिया गया था और चंडीगढ़ में बंदी बनाकर रखा गया था।




तब दिल्ली के रामलीला मैदान में एक लाख से अधिक लोगों ने जय प्रकाश नारायण की गिरफ्तारी के खिलाफ हुंकार भरी थी। उस समय आकाश में सिर्फ उनकी ही आवाज सुनाई देती थी। उसी वक्त राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' ने कहा था 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।' 'दिनकर' ने  कहा  :-  

 " कहते हैं उसको "जयप्रकाश"
जो नहीं मरण से डरता है,
ज्वाला को बुझते देख, कुण्ड में
स्वयं कूद जो पड़ता है।

है "जयप्रकाश" वह जो न कभी
सीमित रह सकता घेरे में,
अपनी मशाल जो जला
बाँटता फिरता ज्योति अँधेरे में। "    रामधारी सिंह 'दिनकर'


यह संयोग ही है कि आज से आगामी सप्ताह में जेपी का जन्मदिवस और पुण्यतिथि दोनों ही हैं ।

थोड़ा-थोड़ा करके तो जेपी को जाना ही है, पर आज से पहले 'दियारा सिताब' के इस नक्षत्र के बारे में कोई प्रामाणिक किताब मेरे पास मौजूद ना थी। आज तीन किताबें खोजी हैं जिनमें से एक का जिक्र यहाँ जरुर करना चाहूँगा वो है 'श्री रामवृक्ष बेनीपुरी' की 'जयप्रकाश' , अगर आजादी के समय तक के जेपी के बारे में आप जानना चाहते हैं तो यह किताब आपको नि:शुल्क उपलब्ध करवाने में मुझे आत्मीय संतोष होगा। समाज-परिवर्तन के कंटकाकीर्ण मार्ग की अभिव्यक्ति उन्हीं के शब्दों में :-

" सफलता और विफलता की/ परिभाषायें भिन्न हैं मेरी,
इतिहास से पूछो कि वर्षों पूर्व बन नहीं सकता था प्रधानमंत्री क्या ?
किन्तु मुझ क्रांतिशोधक के लिए कुछ अन्य ही पथ मान्य थे,उद्दिष्ट थे
पथ त्याग के, सेवा के, निर्माण के/ पथ संघर्ष संपूर्ण क्रांति के । " - जयप्रकाश नारायण


4 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, उधर मंगल पर पानी, इधर हैरान हिंदुस्तानी - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    उत्तर
    1. लोकनायक जेपी को समर्पित स्मृति आलेख को ब्लॉग-बुलेटिन में सम्मिलित करने हेतु शिवम जी और ब्लॉग-बुलेटिन टीम का हार्दिक आभार !

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  2. जिन्हें वास्तव में महत्व मिलना चाहिये वे ही अँधेरों में रह जाते हैं !

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    उत्तर
    1. जी, सच कहा आपने , जेपी चाहते तो कभी भी प्रधानमंत्री बन सकते थे, पर उन्होंने इसके बजाय अलख जगाना जरूरी समझा , इस आलेख को पढने हेतु आपका हार्दिक आभार :)

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