tag:blogger.com,1999:blog-1228806858651443225.post8832987299241602023..comments2024-01-31T12:34:46.771+05:30Comments on एक:: बिखरता समाज और वेद - 1 Amit Kumar Nemahttp://www.blogger.com/profile/04729633113798090904noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-1228806858651443225.post-68007848463584692932014-03-28T13:48:40.982+05:302014-03-28T13:48:40.982+05:30स्नेहिल रामरत्न जी , साधूवाद, आपकी सटीक प्रतिक्रिय...स्नेहिल रामरत्न जी , साधूवाद, आपकी सटीक प्रतिक्रिया में जिन कारणों का उल्लेख किया गया है नि:संदेह वह भी समस्याओं के मूल में व्याप्त हैं | मैंने प्रयास किया है सम-सामयिक समस्याओं का समाधान खोजने के लिए अपनी जड़ों की ओर लौटने का , जब समाज समरस होगा तभी वास्तविक अर्थों में इसके अस्तित्व का बोध होगा | पुनश्च धन्यवाद !!Amit Kumar Nemahttps://www.blogger.com/profile/04729633113798090904noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1228806858651443225.post-41360494510824203652014-03-28T13:26:33.555+05:302014-03-28T13:26:33.555+05:30बहुत ही सुंदर और ज्ञानवर्धक लेख, साधुवाद!
समाज मे ...बहुत ही सुंदर और ज्ञानवर्धक लेख, साधुवाद!<br />समाज मे व्याप्त बुराईयां, दिन-प्रतिदिन होती घटनाएं, निश्चित ही भारत जैसे महान आध्यात्मिक राष्ट्र के लिए चिंता की बात है! इसको बढ़ाने मे हमारी वर्तमान शिक्षा पद्धति भी कम दोषी नही है! हमारे यहाँ शिक्षा के बारे मे कहा जाता था-सा विद्या या विमुक्तये, जिसे बदलकर आज सा विद्या या नियुक्तये कर दिया गया,छात्रों को बचपन से ही आज धन को सर्वोपरी रखने और भोगवादी बनने की शिक्षा मिल रही! हमे इनको रोकना होगा और इन बुराइयों से हमे मुक्ति आध्यात्म के राह पर चलकर तथा वेदों, उपनिषदों को अपने जीवन मे उतारकर ही मिलेगी! Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/11131598390208649866noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1228806858651443225.post-68242034767553772942014-03-28T11:39:32.250+05:302014-03-28T11:39:32.250+05:30प्रिय जीत पंडित जी , आपने मेरा आलेख पढ़ा और यह आपको...प्रिय जीत पंडित जी , आपने मेरा आलेख पढ़ा और यह आपको अच्छा लगा , आपका आभारी हूँ . शीघ्र ही इसका शेष भाग प्रस्तुत करूंगा , आपका संरक्षण अपेक्षित है | Amit Kumar Nemahttps://www.blogger.com/profile/04729633113798090904noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1228806858651443225.post-81859114323696322562014-03-28T05:30:55.877+05:302014-03-28T05:30:55.877+05:30ज्ञान वर्धक साधुवादज्ञान वर्धक साधुवादjeet pandithttps://www.blogger.com/profile/03483588708765847154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1228806858651443225.post-30815943761940326622014-03-27T21:11:24.966+05:302014-03-27T21:11:24.966+05:30प्रिय स्वप्निल , आपकी प्रतिक्रिया सदैव मेरे उत्साह...प्रिय स्वप्निल , आपकी प्रतिक्रिया सदैव मेरे उत्साहवर्धन में सहायक रही है | अभी यह आलेख का पहला भाग है , अगले भाग में इसी विषय को निरंतर करूंगा | हाँ, आपने सही कहा काफी समय से यात्रा श्रंखला का कोई नवीन आलेख प्रकाशित नहीं कर पाया हूँ , मेरी नजर है इस बात पर भी , किन्तु शीघ्र ही आपकी यह शिकायत दूर करने की कोशिश की जायेगी | मेरे हार्दिक धन्यवाद कृपया स्वीकार करें | <br /> Amit Kumar Nemahttps://www.blogger.com/profile/04729633113798090904noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1228806858651443225.post-75506286130968846622014-03-27T20:40:29.750+05:302014-03-27T20:40:29.750+05:30एक अच्छा और सार्थक लेखन जिसके लिए आपको न ही धन्यवा...एक अच्छा और सार्थक लेखन जिसके लिए आपको न ही धन्यवाद और न आभार-साभार। सीधा हार्दिक नमन भारतीय संस्कृति,लोकाचार और जीवन पद्धति का समिश्रण तो है ही आपका आलेख।।।।साथ ही लोगों में परस्पर बढती वैमनस्यता के द्वारा आपने लोगों के साधन और साध्य की पवित्रता की अनदेखी करने की तरफ भी ध्यान आकर्षित किया है। फिर उपाय भी बताये है की कैसे समन्वय से मधुर सम्बन्ध स्थापित किये जा सकते है ।कुल मिलाके एक संतुलित आलेख जिसमे मानव जीवन की विशिष्टताओं और उससे जुरे हर पहलू पर संक्षिप्त मगर सटीक व्याख्या की गयी है,मानों गागर में सागर।।<br />बाकी एक शिकायत है की अभी तक आपने यात्रा वृतांत पूरा नहीं सुनाया है।।। हम आपकी व्यस्तता और मजबूरी समझ सकते है। पर भविष्य में उम्मीद करेंगे की आप इसे अवश्य प्रकाशित करेंगे।।।।<br />आपका स्नेहिल स्वप्निलयू एस मिश्रा स्वप्निलhttps://www.blogger.com/profile/15917601817608596526noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1228806858651443225.post-17238947590058663902014-03-27T20:39:14.847+05:302014-03-27T20:39:14.847+05:30एक अच्छा और सार्थक लेखन जिसके लिए आपको न ही धन्यवा...एक अच्छा और सार्थक लेखन जिसके लिए आपको न ही धन्यवाद और न आभार-साभार। सीधा हार्दिक नमन भारतीय संस्कृति,लोकाचार और जीवन पद्धति का समिश्रण तो है ही आपका आलेख।।।।साथ ही लोगों में परस्पर बढती वैमनस्यता के द्वारा आपने लोगों के साधन और साध्य की पवित्रता की अनदेखी करने की तरफ भी ध्यान आकर्षित किया है। फिर उपाय भी बताये है की कैसे समन्वय से मधुर सम्बन्ध स्थापित किये जा सकते है ।कुल मिलाके एक संतुलित आलेख जिसमे मानव जीवन की विशिष्टताओं और उससे जुरे हर पहलू पर संक्षिप्त मगर सटीक व्याख्या की गयी है,मानों गागर में सागर।।<br />बाकी एक शिकायत है की अभी तक आपने यात्रा वृतांत पूरा नहीं सुनाया है।।। हम आपकी व्यस्तता और मजबूरी समझ सकते है। पर भविष्य में उम्मीद करेंगे की आप इसे अवश्य प्रकाशित करेंगे।।।।<br />आपका स्नेहिल स्वप्निलयू एस मिश्रा स्वप्निलhttps://www.blogger.com/profile/15917601817608596526noreply@blogger.com