tag:blogger.com,1999:blog-1228806858651443225.post6273845317959263022..comments2024-01-31T12:34:46.771+05:30Comments on एक:: बिखरता समाज और वेद - 2Amit Kumar Nemahttp://www.blogger.com/profile/04729633113798090904noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-1228806858651443225.post-45806167207298951852016-04-30T13:32:32.748+05:302016-04-30T13:32:32.748+05:30आपने अपना अमूल्य समयदान कर इसे पढ़ा और सराहा, आपका...आपने अपना अमूल्य समयदान कर इसे पढ़ा और सराहा, आपका बहुत-बहुत आभारी हूँ .Amit Kumar Nemahttps://www.blogger.com/profile/04729633113798090904noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1228806858651443225.post-53648525385168339052016-04-30T11:26:03.349+05:302016-04-30T11:26:03.349+05:30परिवार संस्था पर मिलजुल कर प्रेम से रहने के लिए वे...परिवार संस्था पर मिलजुल कर प्रेम से रहने के लिए वेदों की व्याख्या सहित सार्थक विचारधारा के साथ लिखा बेहतरीन लेख । Praveena joshihttps://www.blogger.com/profile/15007987275551928151noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1228806858651443225.post-42837106877032524102014-04-01T01:43:17.684+05:302014-04-01T01:43:17.684+05:30मेरे प्राणस्वरूप भाई स्वप्निल , भौतिकता पाश अभी दम...मेरे प्राणस्वरूप भाई स्वप्निल , भौतिकता पाश अभी दमदमाता हुआ अपनी चमक बिखेर रहा है, लेकिन कुप्रभाव भी नजर आने लगे हैं | मेरा कहना यह नहीं कि बहुत थोड़े समय में ही हम को अपनी इस धरोहर का मूल्य ज्ञात हो जाएगा लेकिन यह भी सच है कि देर-सबेर जब आदमी अपने आपको इस बनावट की चूहेदानी में फंसा हुआ महसूस करेगा तो वह स्वत: इन विचारों का अनुयायी हो जाएगा | आप मेरे आलेखों को गम्भीरता के साथ पढ़ते हैं और अपना अमूल्य समय मुझे दान कर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराते हैं , इससे मुझे अपने लेखन का यथार्थ बोध होता है | बात औपचारिकता की नहीं है लेकिन मेरा धन्यवाद कहना तो बनता है सो मेरे भाई इसको अपने हृदय से स्वीकार करो और इसी प्रकार मुझे सहयोग प्रदान करते रहो यह प्रार्थना है | जगतजननी आपके सभी मनोरथ पूर्ण करें | Amit Kumar Nemahttps://www.blogger.com/profile/04729633113798090904noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1228806858651443225.post-51993019556383399382014-03-31T17:59:26.114+05:302014-03-31T17:59:26.114+05:30अब चूँकि मै स्वं संयुक्त परिवार में पला-बढ़ा हूँ तो...अब चूँकि मै स्वं संयुक्त परिवार में पला-बढ़ा हूँ तो मैंने रिश्तों की संवेदना को काफी करीब से महसूस किया है। ये संसार भी एक परिवार की तरह है जिसमे अगर आपसी भाईचारे और प्यार के महत्व को समझते हुए आपसी सामंजस्य स्थापित किया जाए तो ये दुनिया ही स्वर्ग सी महसूस होगी जो गर स्वर्ग नाम की कोई चिड़िया होती है तो।।। बाकि आपके आलेख के बारे में क्या कहूँ शब्द ही नहीं मिलते मुझे की मै आपकी प्रशंशा के लिए शब्दों को कहाँ से ढूंढू और फिर एक क्रम में सजाऊ क्यूंकि हरेक सजावट आपके प्रयास के सामने फीकी दिखती है।।। एक बार फिर से विश्व बंधुत्व स्थापित करने जैसे संवेदनशील मुद्दे पर अपने संतुलित विचार रखकर हमारा मार्गदर्शन करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया।।।।<br />अंत में चलते-2 नूतन वर्ष और चैत्र नवरात्र की हार्दिक बधाई।।माँ की असीम कृपा आपपे हमेशा इसी तरह बनी रहे।।।।।<br />जय हो मैया कीयू एस मिश्रा स्वप्निलhttps://www.blogger.com/profile/15917601817608596526noreply@blogger.com